गुरुत्वाकर्षण बल किसे कहते हैं? परिभाषा, सूत्र, नियम, gravitational force in hindi

इस लेख में हम गुरुत्वाकर्षण बल(Gravitational force) के बारे में जानेंगे। यहाँ पर gurutvakarshan bal से सम्बंधित विभिन प्रश्नो का समावेश किया गया है।
जैसे गुरुत्वाकर्षण बल किसे कहते हैं ? गुरुत्वाकर्षण बल की परिभाषा , gurutvakarshan bal का मात्रक ,
विमा, एंव नियम का यहाँ पर विस्तृत रूप से दिए गए हैं। what is gravitational force in hindi

गुरुत्वाकर्षण बल का परिचय (gurutvakarshan bal)

मनुष्य ने सदैव आकाशीय पिंडों का अध्ययन करने का प्रयत्न किया है । इसी के संदर्भ में टॉलमी (Ptolemy) ने द्वितीय शताब्दी में
परिकल्पना की थी कि पृथ्वी, सौर मण्डल के केंद्र पर स्थित है तथा बुध, शुक्र, बृहस्पति, तथा शनि इसके चारों तरफ चक्कर लगाते है।
कोपरनिकस (Copernicus) ने सोलहवीं शताब्दी में सौर मण्डल का सूर्य केंद्रित मॉडल दिया
जिसके अनुसार सूर्य के चारों ओर सभी ग्रह अपनी – अपनी कक्षाओं में गति करते है।

टाइको ब्रेह ने कोपरनिकस द्वारा दिए गए मॉडल का अध्ययन कर ग्रहों को स्थिति के बारे में विभिन्न आंकड़े
प्रस्तुत किए जिन्हें आधार मानकर केप्लर ने ग्रहों की गति के तीन नियम प्रस्तुत किए।
उपरोक्त सभी परिकल्पनाए ग्रहों की गति को बनाए रखने के लिए आवश्यक बल की व्याख्या करने में असफल रही।

गुरुत्वाकर्षण बल किसे कहते हैं? क्या है।

सन् 1986 में न्यूटन (Newton) ने यह बताया कि :- ब्रहांड में पदार्थ का प्रत्येक कण प्रत्येक दूसरे कण को अपनी ओर आकर्षित करता है। इस सर्वव्यापी आकर्षण बल को ‘गुरुत्वाकर्षण बल’ कहते है ।”

गुरुत्वाकर्षण बल का सूत्र

गुरुत्वाकर्षण बल का सूत्र ( formula of Gravity in hindi) :-

F = Gm1m2 / r2

न्यूटन का गुरुत्वाकर्षण का सार्वत्रिक नियम (Universal Law of Gravitation in Hindi)

न्यूटन का गुरुत्वाकर्षण नियम (Newton’s law of Gravitation in hindi)

न्यूटन ने गुरुत्वाकर्षण सम्बन्धी नियम प्रतिपादित किया जिसके अनुसार दो द्रव्य कण के मध्य लगने वाला आकर्षण बल कण के द्रव्यमानों के गुणनफल के समानुपाति तथा उनके मध्य की दूरी के वर्ग के व्युतक्रमानुपाती होता है ।
इस बल की दिशा दोनों कण को मिलाने वाली रेखा की सिध में होती है।

माना कि दो कण जिनके द्रव्यमान क्रमश: m1 व m2 है, परस्पर r दूरी पर स्थित हैं।
यदि उनके मध्य कार्यरत गुरुत्वाकर्षण बल F है तो
गुरुत्वाकर्षण के सार्वत्रिक नियमानुसार

F ~ m1m2

F ~ 1/r2

F ~ m1m2/ r2

F = Gm1m2/r2

यहां G समानुपाति नीयतांक है जिसे सार्वत्रिक गुरुत्वाकर्षण नीयतांक (Universal gravitational constant) कहते हैं।

G = सार्वत्रिक गुरुत्वाकर्षण नीयतांक (Universal gravitational constant)
G = 6.67 × 10 -11 न्यूटन×मी.2/किग्रा.2

Note :- G का मान बहुत कम होने के कारण कम द्रव्यमान के पिंडो के मध्य गुरुत्वाकर्षण बल का अनुभव नहीं किया जाता है।
यदि पिंडो के द्रव्यमान बहुत हो तो इस बल का परिमाण काफी अधिक होता है।

G का मान :-

G = सार्वत्रिक गुरुत्वाकर्षण नीयतांक (Universal gravitational constant)

SI पद्धति में –
G = 6.67 × 10 -11 न्यूटन×मी.2/किग्रा.2

CGS पद्धति में :- G = 6.67×10 -8 डा इन – सेमी 2 / ग्राम 2

विमा :-

[M-1L 3T-2]

बिंदु द्रव्यमान के समूह के कारण किसी बिंदु पर गुरुत्वाकर्षण बल (gravitational force on a Point in Hindi)

भिन्न – भिन्न बिंदुवत द्रव्यमानों के कारण किसी बिंदु द्रव्यमान पर गुरुत्वाकर्षण बल उन बिंदुवत द्रव्यमानों के कारण उस बिंदु द्रव्यमान पर कार्यरत अलग अलग गुरुत्वाकर्षण बलो का सदिश योगफल होता है।

माना कि भिन्न भिन्न बिंदुवत द्रव्यमानों m2,m3,m4,m5 के कारण किसी बिंदु द्रव्यमान m1 पर परिणामी गुरुत्वाकर्षण बल ज्ञात करना है जबकि r12, r13,r14 तथा r15 बिंदु द्रव्यमान m1 से क्रमशः m2,m3,m4 व m5 की दूरियां है।

F12 = G m1m2/ r212 r12

गुरूत्वीय त्वरण (g)

गुरूत्वीय त्वरण किसे कहते हैं :-

पृथ्वी के गुरूत्वीय बल के कारण पृथ्वी की ओर गिरती हुई वस्तु के में परिवर्तन की दर को गुरूत्वीय त्वरण कहते है।

इसे ‘g’ के द्वारा प्रदर्शित करते है। यह वस्तु के आकार, आकृति, द्रव्यमान आदि पर निर्भर नहीं करता है। पृथ्वी तल पर इसका औसत मान 9.8 मी/ से2 होता है। यह मान 45० अक्षाश पर समुन्द्र तल पर माना जाता है।

माना कि पृथ्वी का द्रव्यमान M तथा त्रिज्या R है तथा पृथ्वी का कुल द्रव्यमान उसके केंद्र पर संकेंद्रित है। अब यदि m द्रव्यमान की वस्तु पृथ्वी के केंद्र से r दूरी पर हो तो वस्तु पर कार्यरत गुरुत्वाकर्षण बल

F = GMm/r2

g = GM/R2

गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र :-

किसी द्रव्य कण अथवा द्रव्य कण तंत्र के चारो ओर स्थित क्षेत्र में अन्य द्रव्य कण को गुरुत्वाकर्षण बल का अनुभव होता है। इस क्षेत्र को हम उस द्रव्य कण तंत्र का गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र कहते है।
सैद्धांतिक रूप से गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र की परास अंनत तक होती है , लेकिन प्रायोगिक रूप से किसी विशिष्ट सीमा के
पश्चात गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र बहुत क्षीण हो जाता है।

गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र की तीव्रता (I) :-

किसी गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र में किसी बिंदु पर गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र की तीव्रता को इस बिंदु पर रखे एकांक द्रव्यमान पर आरोपित
गुरुत्वाकर्षण बल द्वारा परिभाषित किया जाता है।

I = F/m

गुरूत्वीय स्थितिज ऊर्जा (Gravitational potential Energy)

किसी गुरूत्वीय क्षेत्र में एक बिंदु पर रखे कण की गुरूत्वीय स्थीतिज ऊर्जा को गतिज ऊर्जा में परिवर्तन किए बिना अंनत से उस बिंदु तक लाने में आवश्यक कार्य की मात्रा द्वारा परिभाषित किया जाता है।

गुरुत्वाकर्षण विभव (Gravitational Potential in hindi )

किसी द्रव्यमान पिंड के चारो ओर गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र को केवल गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र की तीव्रता से ही व्यक्त नहीं किया जा सकता है बल्कि
एक अदिश फलन से भी व्यक्त किया जा सकता है। जिसे गुरुत्वाकर्षण विभव V कहते है।

किसी एकांक द्रव्यमान को उसकी गतिज ऊर्जा में परिवर्तन किए बिना अनंत से किसी बिंदु तक लाने में किया गया कार्य
उस बिंदु पर गुरुत्वाकर्षण विभव कहलाता है।

महत्वपूर्ण तथ्य (गुरुत्वाकर्षण बल नोट्स)

  1. गुरुत्वाकर्षण बल सदैव आकर्षण प्रकृति का होता है।
  2. गुरुत्वाकर्षण बल क्रिया प्रतिक्रिया के युग्म के रूप में उपस्थित होता है अत न्यूटन की गति का तृतीय नियम लागू करना है।
  3. यह दोनों द्रव्यमानों के मध्य के माध्यम पर निर्भर नहीं करता है।
  4. गुरुत्वाकर्षण बल एक केन्द्रीय बल है जिसकी क्रिया रेखा दोनों वस्तुओं के केंद्र को मिलाने वाली रेखा के आनुदिश होती है।
  5. गुरुत्वाकर्षण बल क्षेत्र एक सरक्षी बल क्षेत्र है।
  6. यदि कोई कण गुरुत्वाकर्षण बल के प्रभाव में वृताकार पथ पर गति करता है, तो गुरूत्वाकर्षण बल द्वारा किया गया कार्य पूर्ण चक्कर में हमेशा शून्य होता है।
  7. G का मान बहुत कम होता है अत गुरूत्वीय बल, स्थिर वैधुत तथा नाभिकीय बलो की तुलना में दुर्बल होते है।
  8. गुरुत्वाकर्षण बल व्यापक दूरियों तक प्रभावी होता है यह दूरियों से लेकर अंत प्रमाणविय दूरियों तक प्रभावी होता है।
  9. ग्रह पर एक बल आरोपित होता है जिसकी दिशा सूर्य की ओर होती है।
  10. इस बल का परिणाम, ग्रह तथा सूर्य के बीच की दूरी के वर्ग के व्युतक्रमानुपाती होती है।
  11. यह बल ग्रह के द्रव्यमान के अनुक्रमनुपाती है, ग्रह पर लगने वाला यह बल,ग्रह तथा सूर्य के बीच एक पारस्परिक क्रिया – प्रतिक्रिया बल है अर्थात यह बल सूर्य द्वारा लगने वाला बल ग्रह के द्रव्यमान(m) के समानुपाति है।

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रामप्रसाद RpscGuide में कंटेंट राइटर हैं। रामप्रसाद को पढ़ाई का जुनून है। उन्हें लेखन, करियर, शिक्षा और एक अच्छा कीबोर्ड पसंद है। यदि आपके पास कहानी का कोई विचार है, तो उसे [email protected] पर एक मेल भेजें।

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