परमाणु किसे कहते हैं?
परमाणु की परिभाषा :-
परमाणु पदार्थ को बनाने वाली मूल संरचनात्मक ईकाई है। परमाणु किसी तत्व का सुक्षमतम कण है जो रासायनिक अभिक्रिया में भाग लेता है। परमाणु प्राय: स्वतंत्र अवस्था में नहीं रह सकता है। रासायनिक अभिक्रिया में परमाणु अविभाज्य रूप में भाग लेता है, इस दौरान उसका स्वरूप नष्ट नही होता हैं।
- परमाणु की त्रिज्या को नैनोमीटर में मापा जाता है (परमाणु अत्यन्त है ही सुक्ष्म होते है। इसका आकार 10-10 मीटर परास का होता है।
- 1 nm = 10 m
- 1 m = 10 nm
- सभी द्रव्यों की संरचनात्मक ईकाई परमाणु होता है।
- तत्व के प्रतीकों का प्रयोग करने वाले जॉन डॉल्टन प्रथम वैज्ञानिक थे।
- इंटरनेशनल यूनियन ऑफ प्योर एण्ड एप्लाइड केमिस्ट्री (IUPAC) तत्व के नामो को स्वीकृति देती है।
परमाणु की खोज का दार्शनिक आधार
भारतीय दार्शनिक महर्षि कणाद ने लगभग 500 वर्ष ई.पू. प्रतिपादित किया था कि पदार्थ को विभाजि करते जाये तो अन्ततः ऐसे कण प्राप्त होते है जो आगे विभाजित नहीं होते उन्होंने इन अविभाज्य सुक्ष्मतम कणों को परमाणु कहा।
एक अन्य भारतीय दार्शनिक पकुधा कात्यायन ने महर्षि कणाद के मत को विस्तार से समझाते हुए बताया कि यह अविभाज्य सुक्ष्मतम कण स्वतंत्र न रहकर संयुक्त रूप में पाये जाते है तथा पदार्थ के विभिन्न रूप यथा तत्व, यौगिक, मिश्रण आदि का निर्माण करते है।
महर्षि कणाद द्वारा रचित “वैशेषिक दर्शन” में परमाणु सिद्धान्त का उल्लेख है।
ग्रीक दार्शनिक डेमोक्रिटस एवं लियुसीपस अविभाज्य सुक्षमतम कणों “एटमस” नाम दिया जिसका शाब्दिक अर्थ न काटे जाने वाला था। दर्शन शास्त्र पर आधारित इन खोजो का कोई प्रायोगिक आधार नहीं था।
परमाणु संख्या या परमाणु क्रमांक (Z)
किसी परमाणु के नाभिक में उपस्थित प्रोटॉनों की संख्या परमाणु संख्या अथवा परमाणु क्रमांक कहलाता हैं।
जैसे :-
कार्बन C के लिए Z = 6 क्योंकि C में 6 प्रोटॉन होते है।
हाइड्रोजन परमाणु (H) के लिए Z=1 है क्योंकि हाइड्रोजन के नाभिक में केवल एक प्रोटॉन होता है।
द्रव्यमान संख्या (A)
एक परमाणु के नाभिक में उपस्थित प्रोटॉन और न्यूट्रॉन की कुल संख्या के योग को द्रव्यमान संख्या कहते हैं।
यह सदैव एक पूर्णक संख्या होती हैं।
A = Z+n
परमाणु के भौतिक कण
परमाणु में तीन प्रकार के भौतिक कण पाये जाते है – इलेक्ट्रान, प्रोटॉन एवं न्यूट्रॉन
(1) इलेक्ट्रॉन
इलेक्ट्रॉन की खोज :-
- परमाणु का मूलभूत स्थायी कण। यह नाभिक के बाहर पाया जाता है।
- खोज का श्रेय – जे. जे. थॉमसन
- इलेक्ट्रॉन का नामकरण – स्टोनी द्वारा
- इलेक्ट्रॉन का आवेश – 1.6 x 10-19 कूलॉम (ईकाई ऋणावेश
- इलेक्ट्रॉन का आण्विक द्रव्यमान = विराम द्रव्यमान x आवोगाद्रो संख्या
- इलेक्ट्रॉन का विराम द्रव्यमान – 9.1 × 10-28gm (नगन्य )
= 9.1 x 10-28gm x 6.023 × 1023
= 5.48 x 10-4 ग्राम/मोल - इलेक्ट्रॉन की खोज विद्युत विसर्जन नलिका में कैथोड किरणों की खोज से हुई थी। विसर्जन नलिका काँच की बेलनाकार नलिक होती है जिसके दोनों सिरों पर धातु के दो इलेक्ट्रॉड (कैथोड एक ऐनोड) के मध्य उच्च वोल्टता एवं उच्च निर्वात उत्पन्न करने प कैथोड (-ve सिरा) से उत्पन्न होकर ऐनाड (+ve सिरा) की तरफ किरणों का प्रवाह हुआ। थॉमसन ने इन किरणों को कैथोड किरणें नाम दिया।कैथोड किरणे ऋणावेशित सिरे कैथोड से उत्पन्न होकर धनावेशित सिरे ऐनोड की ओर प्रवाहित हुई जो यह सिद्ध करता था कि ये किरणे ऋणावेशित कणों से बनी है। इन ऋणावेशित कणों को इलेक्ट्रॉन नाम दिया। कैथोड किरणों की खोज विलियम क्रुक्स एवं जे. जे. थॉमसन ने 1878 में की!
- ऐनोड किरणों (घन किरण) की खोज गोल्डस्मिथ ने 1886 में की।
- कैथोड किरणों के गुण –
- 1. ये कैथोड से प्रारम्भ होकर ऐनोड की ओर सीधा रेखा में गमन करती है।
- 2. ये सामान्यत: द्रव्य किरणें (कणीय प्रकृति) होती है जो ऋणावेशित कणों से बनी होती है।
- 3. विद्युत एवं चुम्बकीय क्षेत्रों से प्रभावित होती है।
- 4. प्रति दीप्ति उत्पन्न करती है। आयनन करती है ।
- 5. इनका e/m आवेश द्रव्यमान अनुपात एक समान होता है।
(2) प्रोटॉन
- परमाणु का मूलभूत स्थायी कण यह नाभिक के भीतर पाया जाता है।
- खोज का श्रेय – गोल्डस्टीन 1886 –
- प्रोटॉन नाम – रदरफोर्ड ने दिया।
- गोल्डस्टीन ने विसर्जन नलिका प्रयोग में छिद्रित कैथोड का प्रयोग करते हुए कम दाब एवं उच्च वोल्टता पर ऐनोड से कैथोड की ओर सीधी रेखा में गमन करने वाली किरणे प्राप्त की जो धनावेशित कणों से बनी हुई थी। इन्हीं धनावेशित कणों को प्रोटॉन नाम दिया गया।
- प्रोटॉन पर आवेश – 1.6 × 10-19 कूलाम (ईकाई घनावेश)
- प्रोटॉन का द्रव्यमान – 1.67 × 10-24gm (हाइड्रोजन परमाणु के द्रव्यमान के बराबर)
- एनोड/कैनाल किरणों के गुण –
- ये सीधी रेखा में गति करती है।
- ये कणीय प्रकृति की होती है।
- ये धनावेशित कणों से मिलकर बनी होती है।
- विद्युत एवं चुम्बकीय क्षेत्र में विक्षेपित होती है।
- इनका e/m आवेश द्रव्यमान अनुपात विसर्जन नलिका में भरी हुई गैस पर निर्भर करता है।
- किसी भी परमाणु में ऋणावेशित कण इलेक्ट्रोनों की संख्या धनावेशित कण प्रोट्रॉन की संख्या के बराबर होती है। अतः परमाणु विद्युत उदासीन होता है।इलेक्ट्रॉन का द्रव्यमान हाइड्रोजन परमाणु 1/1837 होता है अर्थात् प्रोटॉन का द्रव्यमान इलेक्ट्रॉन से 1837 गुणा अधिक होता है।इ
- इलेक्ट्रॉन की खोज के कारण जे.जे. थॉमसन को 1906 में भौतिकी का नोबल पुरस्कार मिला।
न्यूट्रॉन (n)
- खोजकर्ता – जैम्स चेडविक 1932 ई.
- आवेश – शून्य
- द्रव्यमान – 1.674 × 10-24 (लगभग प्रोटॉन के समान)
- न्यूट्रॉन की खोज जेम्स चेडविक ने बेरिलियम (Be) धातु पर
- एल्फा कणों (a) के प्रहार करने से उत्पन्न उदासीन कणों के रूप में की थी। यह नाभिक के भीतर पाया जाता है।
- परमाणु के मौलिक कणों का द्रव्यमान का बढ़ता क्रम –
- इलेक्ट्रॉन < प्रोटॉन < न्यूट्रॉन
- स्वतंत्र अवस्था में न्यूट्रॉन अस्थाई रेडियोधर्मी कण है जो नाभिक में प्रोटॉन के साथ स्थायीत्व प्राप्त करता है। न्यूट्रॉन सबसे भारी तथा निम्नतम स्थायी कण है जो परमाणु के नाभिक में उपस्थित होता है। इसकी अर्द्ध आयु 17 मिनट है। आवेश रहित होने के कारण इसका उपयोग नाभिकीय विखण्डन में होता है।
परमाणु के अन्य कण :-
1. पोजिट्रॉन –
खोजकर्ता – सी.डी. एण्डरसन (1932)
इलेक्ट्रॉन का प्रतिकण (Antiparticle)
आवेश – ईकाई घनावेश तथा द्रव्यमान इलेक्ट्रॉन के बराबर।
2. मेसॉन –
खोजकर्ता – युकाबा (1935)
अस्थायी मूल कण है।
आवेश – धनात्मक, ऋणात्मक या शून्य द्रव्यमान – इलेक्ट्रॉन 274 गुणा अधिक
3. न्यूट्रिनो एवं एण्टी न्यूट्रिनो –
न्यूट्रिनो खोजकर्ता – पाउली (1930)
एण्टी-यूट्रिनो के खोजकर्ता – फर्मी (1934)
दोनों कण द्रव्यमान एवं आवेश रहित है। दोनों का चक्रण एक दूसरे के विपरित ।
4. एण्टी प्रोटॉन –
प्रोटॉन का एण्टी कण।
खोजकर्ता – एमिलियो सैगरे (1956)
आवेश – ईकाई ऋणावेश
द्रव्यमान – प्रोटॉन के बराबर
5. क्वार्क –
क्वार्क पदार्थ का मूल कण है जिससे अधिकांश पदार्थ बने है। क्वार्क मिलकर हैड्रॉन बनाते है । क्वार्क का आंशिक आवेश होता है।
6. फोनॉन –
ध्वनि का लघुतम कण है।
7. फोटॉन –
ये ऊर्जा के पैकेट्स होते है। जो प्रकाश के वेग से चलते है। सभी प्रकार की विद्युत चुम्बकीय किरणों का निर्माण इन्हीं मूल कणों से होता है।
8. बोसॉन –
यह एक ऊर्जा कण है। जो किसी भी पदार्थ में ऊर्जा के लिए उत्तरदायी माना गया है इसका नाम प्रसिद्ध भारतीय वैज्ञानिक सत्येन्द्र नाथ बोस के सम्मान में रखा गया है। इसी का एक प्रकार हिंग्स बोसोन है जिसकी खोज के लिए पीटर हिग्स. हिग्स बोसोन को गॉड को 2013 को नोबल पुरस्कार मिला। पार्टिकल भी कहते है ।
परमाणु संरचना के प्रतिरूप/ परमाणु मॉडल
1. थॉमसन का परमाणु मॉडल
परमाणु की संरचना का प्लम पुडिंग मॉडल 1904 में जे. जे. थॉमसन में प्रस्तुत किया जिसके अनुसार परमाणु धनावेशित गोले का बना है जिसके बीच-बीच में ऋणावेशित इलेक्ट्रॉन धँसे होते है। धनावेश व ऋणावेश की मात्रा बराबर होने के कारण परमाणु विद्युत उदासीन होता है। इस मॉडल को तरबूज या बूंदी के लड्डू उदाहरण से समझ सकते है। इस मॉडल द्वारा तापायनिक उत्सर्जन, प्रकाश विद्युत प्रभाव एवं आयनीकरण की व्याख्या की जा सकती है। लेकिनयह स्पेक्ट्रम एवं एल्फा कणों के प्रकीर्णन को समझाने में असफल रहा।
2. रदर फोर्ड का परमाणु मॉडल
रदर फोर्ड का नाभिकीय परमाणु प्रतिरूप :-
रदर फोर्ड का स्वर्ण पत्र पर a – कणों के प्रकीर्णन का प्रयोग किया। यह प्रयोग नाभिक की खोज से सम्बन्धित है।
अतः नाभिक की खोज का श्रेय रदर फोर्ड को है। इन्हें 1908 में भौतिकी को नोबल पुरस्कार मिला।
इन्हें नाभिकीय भौतिकी का जनक कहा जाता है।
रदर फोर्ड के परमाणु मॉडल के लक्षण –
- परमाणु का अधिकांश भाग रिक्त होता है।
- परमाणु का केन्द्र धनावेशित होता है जिसे नाभिक कहते है परमाणु का सम्पूर्ण द्रव्यमान नाभिक में केन्द्रित होता है।
- नाभिक की त्रिज्या 10-15 मीटर कोटि की होती है। जबकि परमाणु की त्रिज्या 10-10 मीटर कोटि की होती है। नाभिक की त्रिज्या परमाणु की त्रिज्या से 105 गुणा छोटी होती है।
- नाभिक का आकार परमाणु के आकार की तुलना में काफी कम होता है।
- इलेक्ट्रॉन नाभिक के चारों ओर निश्चित वृताकार कक्षाओं में चक्कर लगाते है। जैसे ग्रह सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाते है। अतः इसे सौलर मॉडल भी कहा जाता है। इन वृताकार कक्षाओं को ऊर्जा स्तर कहते है।
- रदरफोर्ड का मॉडल परमाणु के स्थायीत्व तथा रेखीय स्पेक्ट्रम की व्याख्या नहीं कर सका।
- रदरफोर्ड के परमाणु मॉडल को सौलर मॉडल भी कहते है।
3. बोर (Bohr) का परमाणु मॉडल
1913 ई. नील्स बोर ने मैक्स प्लांक के क्वाण्टम सिद्धान्त का उपयोग करते हुए रदरफोर्ड के मॉडल की कमियों को दूर करने हेतु निम्न अवधारणाएं प्रस्तुत की :-
- 1. इलेक्ट्रॉन नाभिक के चारों ओर बिना ऊर्जा का उत्सर्जन किये विशेष स्थाई कक्षाओं में चक्कर लगाता है। जिन्हें ऊर्जा स्तर कहते है। किसी कक्षा विशेष के सभी इलेक्ट्रॉनों की ऊर्जा समान होती है। (K, L, M, N. कक्षाएं)
- 2. इलेक्ट्रॉन अपने निश्चित ऊर्जा स्तर में बिना ऊर्जा खोये घूम सकता है लेकिन जब वह एक ऊर्जा स्तर से दूसरे ऊर्जा स्तर में जाता है तो ऊर्जा का उत्सर्जन या अवशोषण करता है।
- 3. इलेक्ट्रॉन के ऊर्जा स्तर में चक्कर लगाने के कारण उत्पन्न अपकेन्द्री बल नाभिक तथा इलेक्ट्रॉन के आकर्षण बल से संतुलित होता. है। इसलिए इलेक्ट्रॉन उन्हीं कक्षाओं में घूम सकता है जिनका कोणीय संवेग (mvr) का मान h/2 का पूर्ण गुणज होगा।
बोर परमाणु मॉडल की कमी :-
- यह मॉडल हाइड्रोजन के अलावा अन्य परमाणुओं के स्पेक्ट्रम की व्याख्या नहीं कर सका।
- यह जीमान प्रभाव (चुम्बकीय क्षेत्र में स्पैक्ट्रम रेखाओं का विभक्त होना) तथा स्टार्क प्रभाव (विद्युत क्षेत्र में स्पेक्ट्रम रेखाओं का विभक्त होना) को नहीं समझा सका।
बोर परमाणु मॉडल से सबंधित अन्य तथ्य :-
- बोर मॉडल आधुनिक भौतिकी की आधार शिला है। इसके लिए 1922 में भौतिकी का नोबल मिला।
- सोमर फिल्ड ने अपने परमाणु मॉडल में हाइड्रोजन के सुदृढ़ स्पेक्ट्रम की व्याख्या की।
- फॉसिसी वैज्ञानिक लुई द ब्रोडली ने इलेक्ट्रानों की तरंग प्रकृति का प्रतिपादन किया।
- हाइजेनवर्ग ने अनिश्चितता का सिद्धान्त प्रस्तुत किया जिसके अनुसार किसी गतिशील सुक्ष्म कण (यथा इलेक्ट्रान, प्रोटॉन, न्यूट्रॉन इत्यादि) की स्थिति एवं संवेग का एक साथ निर्धारण करना संभव नहीं है। यह सिद्धान्त बड़े कणों पर लागू नहीं होता क्योंकि बड़े कणों का द्रव्यमान अधिक होता है।
- आधुनिक परमाणु सिद्धान्त 1926 ई में श्रॉडिन्गर ने प्रस्तुत किया जो इलेक्ट्रान की तरंग प्रकृति पर आधारित है।
- नाभिक के बाहर वह त्रिविमिय क्षेत्र जिसमें इलेक्ट्रान पाये जाने की संभावना सर्वाधिक होती है उसे श्रॉडिंगर ने कक्षक (Orbit) नाम दिया। एक कक्षक में अधितम दो इलेक्ट्रॉन होते है जिनके चक्रण एक दूसरे के विपरित होते है। किसी कक्षा में अधिकतम इलेक्ट्रानों की संख्या 2n होती है।
- परमाणु में चार प्रकार के कक्षक होते है।
4. जॉन डाल्टन का परमाणु सिद्धान्त
परमाणु सन् 1808 में इंग्लैण्ड के वैज्ञानिक जॉन डाल्टन सिद्धान्त प्रस्तुत किया। डाल्टन का परमाणु सिद्धान्त रासायनिक संयोजन के नियमों पर आधारित था। डाल्टन के परमाणु सिद्धान्त द्वारा द्रव्यमान संरक्षण नियम एवं स्थिर अनुपात के नियम की युक्ति संगत व्याख्या की जा सकती थी। परमाणु की खोज का श्रेय डॉल्टन को है।
डॉल्टन के परमाणु सिद्धान्त के मुख्य अभिग्रहित है :-
- सभी पदार्थ परमाणुओं से मिलकर बने होते है।
- परमाणु अविभाज्य सुक्षमतम कण है। किसी रासायनिक अभिक्रिया परमाणु को न तो नष्ट कर सकते है और न ही उत्पन्न । परमाणु अविनाशी है।
- एक ही तत्व के सभी परमाणुओं के रासायनिक गुणधर्म समान होते है। लेकिन भिन्न-भिन्न तत्वों के परमाणु भिन्न-भिन्न गुणधर्म रखते है।
- भिन्न-भिन्न तत्वों के परमाणु परस्पर पूर्ण संख्या के अनुपात संयोग करके यौगिक बनाते है। किसी भी यौगिक में अवयवी तत्व के परमाणुओं की संख्या एवं प्रकार निश्चित होता है।
- रासायनिक परिवर्तनों में परमाणुओं का संयोजन, वियोजन या पुनर्विन्यास होता है। लेकिन परमाणु अपनी मूल अवस्था बनाये रखते है।