नमस्कार पाठको आपका स्वागत है हमारे इस एजुकेशन प्लेटफार्म पर आज हम राजस्थान के प्रमुख मन्दिर एवं उनके नाम के विषय में अध्ययन करेंगे। यहां इस लेख आपके लिए सम्पूर्ण प[ाथ्य सामग्री उपलब्ध करवाई गयी है जो आपके राजस्थान की कला एवं संस्कृति के टॉपिक राजस्थान के प्रमुख मन्दिर एवं उनके नाम का सम्पूर्ण ज्ञान है।
द्रविड़ शैली के मंदिर
रंगनाथ जी का मंदिर
– स्थान – पुष्कर (अजमेर)
– शैली – द्रविड़ शैली या गोमुख शैली
– भगवान विष्णु को समर्पित है।
33 करोड़ देवी-देवताओं का मंदिर
– स्थान –जूनागढ़ दुर्ग
– औरंगजेब के सेनापति व बीकानेर के शासक अनूपसिंह दक्षिण भारत से आते समय मूर्तियाँ लेकर आए।
– इस मंदिर में ‘हस्य गणपति’ की मूर्ति है जिसमें गणेश जी ‘सिंह पर सवार’ है।
नागर शैली के मंदिर
सावित्री मंदिर या सरस्वती मंदिर
स्थान –रत्नगिरी पहाड़ी (पुष्कर)
– इस मंदिर में दो प्रतिमाएँ हैं-
1. सावित्री माता
2. माँ सरस्वती
– यह राज्य का एकमात्र सरस्वती मंदिर है।
एकलिंगजी या लकुलीश का मन्दिर
स्थान – कैलाशपुरी (उदयपुर)
निर्माणकर्ता – बप्पा रावल।
– राजस्थान में भगवान शिव का सबसे बड़ा मन्दिर।
– भगवान शिव की काले पत्थर की चन्द्रमुखी मूर्ति।
– इस मन्दिर के चारों तरफ परकोटे का निर्माण राणा मोकल एवं राणा कुंभा द्वारा करवाया गया।
– मेवाड़ के गुहिल-सिसोदिया राजवंश के शासक स्वयं को ‘एकलिंगजी के दीवान’ मानते थे।
– यहाँ पर हारित ऋषि की मूर्ति भी स्थित है।
जगदीश मन्दिर (उदयपुर)
– निर्माणकर्ता :- महाराणा जगतसिंह प्रथम (1651)
– पंचायतन शैली में बने इस मन्दिर में भगवान विष्णु की काले पत्थर की प्रतिमा है।
– मन्दिर के चारों कोनों में शिव-पार्वती, गणपति, सूर्य एवं बाण माता की मूर्तियाँ स्थापित हैं।
– गर्भगृह के सामने भगवान विष्णु के वाहन गरुड़ की विशाल प्रतिमा है।
शीतलेश्वर महादेव या चन्द्रमोलेश्वर मन्दिर
– स्थान :- झालरापाटन (झालावाड़)
– यह राजस्थान का प्राचीनतम है जस पर समयांकित(विक्रम संवत् 746) है।
– यह प्रारम्भिक गुप्त शैली का मन्दिर है।
सोमेश्वर मन्दिर
– स्थान – किराडू (बाड़मेर)
– 11वीं व 12वीं सदी में बना यह भगवान शिव को समर्पित है।
– खजुराहो शैली से समानता।
– उपनाम – ‘राजस्थान का खजुराहो’, ‘मारवाड़ का खजुराहो।‘
– गुर्जर-प्रतिहार शैली का अन्तिम एवं सबसे भव्य बना मन्दिर।
– इस मन्दिर का शिखर 65 अंग-उपांग युक्त है।
– इस मन्दिर में वीर रस, शृंगार रस और कामशास्त्र की भाव भंगिमाएँ प्रस्तुत करने वाले चित्र उत्कीर्ण किये गये हैं।
शिव मन्दिर या भण्डदेवरा मन्दिर
– स्थान – भण्डदेवरा (बाराँ)
– उपनाम – ‘हाड़ौती का खजुराहो’।
– 1125 ई. में निर्मित इस मन्दिर के मण्डप में स्तम्भों की भव्यता दर्शनीय है।
– यह देवालय पंचायतन शैली में बना हुआ।
– इस मन्दिर का आधार ‘स्टेनलैट प्लेन’ है।
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अम्बिका माता मन्दिर
– स्थान – जगत (उदयपुर)
– उपनाम – ‘मेवाड़ का खजुराहो’।
– वर्ष 961 में निर्मित इस मन्दिर का गर्भगृह एवं मण्डप बहुत कलात्मक है।
– इस मन्दिर के शिखर में 25 अंग-उपांग हैं।
आदिनाथजी मन्दिर या ऋषभदेवजी मन्दिर
– जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर आदिनाथजी को समर्पित यह मंदिर 1031 में गुजरात के चालुक्य शासक भीम प्रथम के मंत्री विमलशाह ने करवाया था, इस कारण इस मन्दिर को विमलशाही मंदिर भी कहते हैं।
– मन्दिर में संगमरमर के पत्थर पर अत्यन्त बारीकी से कार्य किया गया है।
नेमीनाथ मन्दिर या देवरानी-जेठानी मंदिर
– 1231 में गुजरात के चालुक्य शासक वीररावल के मंत्री वास्तुपाल एवं तेजपाल ने भगवान नेमीनाथ को समर्पित इस जैन मन्दिर में काले पत्थर से निर्माण करवाया था।
रणकपुर जैन मंदिर
– स्थान – सादड़ी गाँव के निकट (पाली)
– शिल्पी – देपाक
– निर्माण – धरणक शाह (राणा कुम्भा के वित्त मंत्री)
– उपनाम – ‘चौमुखा जैन मंदिर’, ‘खम्भों का अजायबघर’
– आदिनाथ जैन मंदिर – ऋषभदेव को समर्पित
– मथाई नदी के किनारे
– धरणक शाह ने यह मंदिर राणा कुम्भा द्वारा दान में दी गई भूमि पर बनवाया राणा द्वारा भूमि दान में दिए जाने के कारण यह मंदिर रणकपुर कहलाया।
– इस मंदिर में 1444 खम्भे है तथा प्रत्येक खम्भा अद्वितीय है।
– विमल सूरी ने इस मंदिर को ‘नलिनी गुल्म विमान’ की संज्ञा दी।
– कवि मेह ने इस मंदिर को ‘त्रिलोक दीपक प्रसाद मंदिर’ कहा।
– यह मंदिर पंचायतन शैली व भूमिज शैजी में निर्मित है।
श्रीनाथ जी मन्दिर
– स्थान – नाथद्वारा (राजसंमद)
– बनास नदी के किनारे एवं NH-8 के समीप
– काले पत्थर की मूर्ति
– अन्नकूट महोत्सव (कार्तिक शुक्ल एकम) – ‘भीलों की लूट’ प्रसिद्ध
– हवेली स्थापत्य शैली में बनाए गए, इस मन्दिर में ‘भगवान कृष्ण के बाल रूप’ (वल्लभ सम्प्रदाय) की पूजा की जाती है। यह मन्दिर ‘हवेली संगीत’ एवं ‘पिछवाई कला’ के लिए प्रसिद्ध है।
गोविन्द देव जी मन्दिर
– स्थान – जयपुर
– इस मन्दिर की प्रतिमा सवाई जयसिंह द्वितीय वृंदावन से जयपुर लाए थे।
– गौड़ीय सम्प्रदाय के इस मन्दिर में ‘कृष्ण व राधा के युगल रूप की पूजा’ की जाती है।
– यह मन्दिर जगन्नाथ पुरी (उड़ीसा), ब्रज क्षेत्र तथा ढुँढाड़ क्षेत्र सांस्कृतिक परम्पराओं का सुंदर समन्वय है।
सास-बहू का मन्दिर
– स्थान – नागदा (उदयपुर)
– कालभोज के रासौ का देवरा (जैन मन्दिर)।
– रामायण एवं महाभारत को चित्रित किया गया है।
– यह मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है।
– यह मन्दिर 975 ई. में बनाया गया था।
– इसमें दो मन्दिर बनाए गए है।
– बड़ा मन्दिर, ‘सास का मन्दिर’ कहलाता है, जिसमें 10 देव प्रतिमाएँ विराजमान है
– छोटा मन्दिर, ‘बहु का मन्दिर’ कहलाता है, इसे पंचायतन शैली में बनाया गया है।
जगतशिरोमणि मन्दिर
– स्थान – आमेर (जयपुर)
– इसका निर्माण महाराजा मानसिंह प्रथम की पत्नी कंकावती ने अपने पुत्र जगतसिंह की याद में करवाया था।
– इस मन्दिर में भगवान कृष्ण की काले पत्थर की मूर्ति है। ऐसा कहा जाता है कि इस मन्दिर में स्थापित भगवान कृष्ण की मूर्ति, चित्तौड़गढ़ के मीरा मन्दिर से लाई गई थी।
– मन्दिर के शिल्प एवं सौन्दर्य पर मुगल शैली का स्पष्ट प्रभाव दिखाई देता है।
ओसिया के मन्दिर
– स्थान – जोधपुर
– यह मन्दिर गुर्जर-प्रतिहार काल में गुर्जर-महामारू शैली में बनाए गए है, इन मन्दिरों का तोरण द्वार भव्य है। मन्दिरों में पंचायतन शैली का अनुसरण किया गया है। शैलीगत विविधता मिलती है।
यहाँ निम्नलिखित चार मंदिर पाए जाते हैं-
– सच्चियाय माता मन्दिर
– सूर्य मन्दिर
– हरिहर मन्दिर
– भगवान महावीर का मन्दिर
कैला देवी मन्दिर
– स्थान – करौली
– मूल मन्दिर खींची राजपूतों द्वारा तथा कालांतर में यादव वंशज भंवरपाल द्वारा संगमरमर से निर्मित करवाया गया था।
– मुख्य मन्दिर में कैलादेवी (महालक्ष्मी) के रूप में पूजी जाती है।
– धार्मिक आस्था का केन्द्र – लक्खी मेला
– यहाँ का लांगुरिया नृत्य व जोगनिया गीत प्रसिद्ध है।
सूर्य मन्दिर
– स्थान – झालरापाटन (झालावाड़)
– सूर्य और विष्णु के सम्मिलित भाव की एक ही त्रिमुखी सूर्य प्रतिमा मुख्य रथिका में है।
– गर्भगृह के बाहर शिव की ताण्डव नृत्यरत प्रतिमा और मातृकाओं की प्रतिमाएँ प्रतिष्ठित की गई।
ब्रह्माजी के प्रमुख मंदिर
(i) पुष्कर (अजमेर)
– यह ब्रह्मा जी का सम्पूर्ण भारत में एकमात्र मंदिर है, जहाँ ब्रह्माजी की विधिवत रूप से पूजा होती है।
– इस मंदिर का मूल निर्माणकर्ता के बारे में जानकारी नहीं है। लेकिन वर्तमान स्वरूप ‘गोकुल चन्द्र पारिक’ ने दिया।
– कर्नल जेम्स टॉड इस मंदिर पर लगे क्रॉस चिह्न को देखकर चकित रहे गए थे।
(ii) आसोतरा (बाड़मेर)
– निर्माण – खेताराम जी महाराज
(iii) छिछ गाँव (बाँसवाडा)
– आम्बलिया तालाब के किनारे
गणेशजी के प्रमुख मंदिर
(i) त्रिनेत्र गणेश – रणथम्भौर दुर्ग
(ii) नृत्य गणेश – अलवर
(iii) बाजणा गणेश – सिरोही
(iv) मूरला गणेश – डूंगरपुर
(v) खेड गणेश – खेड (बाडमेर)
(vi) खडे गणेश – कोटा
(vii) खोडा गणेश – किशनगढ़ (अजमेर)
(viii) काक गणेश – जैसलमेर
(ix) मोती डूँगरी गणेश – जयपुर
(x) हेरम्ब गणेश – जूनागढ़ दुर्ग – सिंह पर सवार
(xi) बोहरा गणेश – उदयपुर
(xii) गढ़ गणेश – जयपुर
सप्त गोमाता मंदिर
– रैवासा (सीकर)
– यह देश का एकमात्र सप्त गोमाता मंदिर है।
राधा जी का मंदिर
– स्थान – सलेमाबाद (अजमेर)
– यह राज्य में राधा जी का सबसे बड़ा मंदिर है।
72 जिनालय मंदिर
– स्थान –भीनमाल (जालोर)
– यह एक जैन मंदिर है जिसमें जैन धर्म के 24 तीर्थंकरों की 3-3 प्रतिमाएँ लगी हुई हैं।
– यह क्षेत्रफल की दृष्टि से यह ‘राजस्थान का सबसे बड़ा मंदिर’ है।
रसिया-बालम और कुँआरी कन्या का मंदिर
– स्थान – माउण्ट आबू,(सिरोही)
– इस मंदिर में रसिया अपने हाथों में विष का प्याला लेकर खड़ी है।
सोनी जी की नसियाँ या लाल मंदिर
– स्थान – अजमेर
– निर्माण – 1870 मूलचन्द सोनी ने लाल पत्थरों से करवाया।
– जैन तीर्थंकर ऋषभदेव को समर्पित
– भाग-1 (नसियाँ) – 24 जैन तीर्थंकरों की प्रतिमाएँ – सभी धर्मों के लिए
– भाग-2 (अक्षरधाम) – 400 किलोग्राम सोने से निर्मित – केवल जैन धर्म के लोगों के लिए
गोकर्णेश्वर महादेव मंदिर
– स्थान – बीसलपुर बाँध के निकट (टोंक)
– ऐसी मान्यता है कि यहां रावण ने 6 माह तक भगवान शिव की तपस्या की थी।
ऊषा मंदिर
– स्थान – बयाना दुर्ग (भरतपुर)
– यह भगवान कृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध की पत्नी ऊषा का मंदिर है।
– यह भारत में यह एकमात्र ऊषा मंदिर है।
– बयाना का प्राचीन नाम ‘बाणपुर’ था क्योंकि बाणासुर की पुत्री ऊषा और भगवान कृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध के मध्य प्रेम का रास यहीं रचा गया था।
– इस स्थान पर फक्का वंश की राजकुमारी चित्रालेखा ने इस मंदिर का निर्माण करवाया गया था।
– कालान्तर में आक्रमणकारियों ने इस मंदिर को तुड़वाकर ऊषा मस्जिद का निर्माण करवाया गया था।
– परन्तु कुछ समय बाद भरतपुर के जाट शासकों ने इस मस्जिद को तुड़वाकर पुन: ऊषा मंदिर का निर्माण करवा दिया।
गंगा मंदिर
– स्थान – भरतपुर नगर
– राज्य में एक मात्र गंगा मंदिर।
लक्ष्मण मंदिर
– स्थान – भरतपुर
– भरतपुर के शासक लक्ष्मण के वंशज माने जाते है।
विभीषण मंदिर
– स्थान – कैथून (कोटा)
– यह भारत का एकमात्र विभीषण मंदिर है।
सम्बोधि धाम
– स्थान – जोधपुर
देलवाड़ा के जैन मंदिर
– स्थान – माउंट आबू (सिरोही)
– श्वेताम्बर जैन मंदिरों का समूह
– काल – 11 से 13वीं सदी के मध्य निर्मित
– शैली – नागर शैली
– डाक टिकट – 14 अक्टूम्बर, 2009 – भारत सरकार द्वारा
– कर्नल जेम्स टॉड – “ताजमहल को छोड़कर देश की सबसे सुन्दर इमारत देलवाड़ा के जैन मंदिर समूह है।“
गोसण बावजी का मंदिर
– स्थान – सराड़ा (उदयपुर)
– पत्थर का बैल चढ़ाने की परम्परा।
– बैल खो जाने के बाद इस मंदिर में मनौती के रूप में बैल चढ़ाने की परम्परा चली आ रही है।
ईडाणा माता का मंदिर
– स्थान – बंबोर (उदयपुर)
– ईडाणा माता – अग्नि स्नान करने वाली देवी।
– यहां नारियल, मौली, प्रसाद की अग्नि जल कर शांत हो जाती है।
भाडासर जैन मंदिर
– स्थान – बीकानेर नगर
– निर्माण – भांडू शाह व्यापारी
– नीवों में नारियल व घी भरा गया था।
– सुमतिनाथ को समर्पित (5वें तीर्थंकर)
– इस मंदिर को ‘त्रिलोक दीपक प्रसाद’ मंदिर भी कहते हैं।
पद्मनाथ मंदिर या वैष्णव या सात सहेलियों का मंदिर
– स्थान – झालरापाटन (झालावाड़)
– भगवान विष्णु को समर्पित
– कर्नल जेम्स टॉड ने इसे ‘चारभुजानाथ मंदिर’ का नाम दिया।
राजस्थान में निर्मित निम्न मंदिर प्रतिहार कालीन महामारू शैली में निर्मित हैं –
(i) कालिका माता मंदिर – चित्तौड़गढ़ दुर्ग
(ii) कुंभस्वामी मंदिर – चित्तौड़गढ़ दुर्ग
(iii) समिद्धेश्वर मंदिर – चित्तौड़गढ़ दुर्ग
(iv) दधिमति माता का मंदिर – गोठ मांगलोद (नागौर)
(v) महावीर स्वामी – ओसियां
– यह राजस्थान में महावीर स्वामी का सबसे प्राचीन मंदिर है।
राजस्थान के प्रमुख मीरा मंदिर
क्र. सं. | मन्दिर | स्थान | निर्माणकर्ता |
(i) | कुडकी गाँव या मीरगढ़ दुर्ग में | कुडकी (पाली) | रतनसिंह |
(ii) | चारभुजा नाथ या मीरा मंदिर | मेड़ता सिटी | राव दूदा |
(iii) | कृष्ण मंदिर या मीरा | चित्तौड़गढ़ दुर्ग | राणा सांगा |
(iv) | जगत शिरोमणि या मीरा मंदिर | आमेर | मिर्जाराजा मानसिंह |
(v) | हरिहर मंदिर या मीरा मंदिर | कैलाशपुर (उदयपुर) | राणा कुम्भा |