स्वागत है आपका हमारे इस ऑनलाइन एजुकेशन प्लेटफार्म पर आज हम इस लेख में राजस्थान की प्रमुख राजस्थान की भाषा एवं बोलियाँ के अध्ययन करेंगे। यहां आपको RAJASTHAN GK के महत्वपूर्ण टॉपिक और राजस्थान की कला और संस्कृति के अभिन्न अंग के विषय में विस्तार से बतया गया हैं।
राजस्थानी बोलियों का सर्वप्रथम उल्लेख तथा वैज्ञानिक वर्गीकरण जॉर्ज अब्राह्मम ग्रियर्सन ने ‘लिंग्विस्टिक सर्वे ऑफ इंडिया’ में किया। राजस्थान के संबंध में एक लोकोक्ति प्रचलित है- ‘पाँच कोस पर पानी बदले, सात कोस पर बाणी’
राजस्थानी भाषा दिवस कब मनाया जाता हैं ?
21 फरवरी को ‘राजस्थानी भाषा’ दिवस तथा 14 सितम्बर को ‘हिन्दी दिवस’ मनाया जाता है।
राजस्थान की राजभाषा
राजस्थान की राजभाषा हिंदी है।
राजस्थान की मातृभाषा
राजस्थान की मातृभाषा राजस्थानी है।
मरुभाषा/राजस्थानी भाषा के बारें में जानकारी देने वाले ग्रंथ:-
कुवलयमाला:–
– उद्योतन सूरी द्वारा 8वीं सदी में लिखित ग्रन्थ।
– इसमें भारत पर हुए हूणों के आक्रमणों का प्रमाण मिलता है।
– इसमें 18 देशी भाषाओं का उल्लेख है, जिसमें ‘मरु भाषा’ का भी उल्लेख किया हैं, जिसे वर्तमान में मारवाड़ी कहा जाता है।
पिंगल शिरोमणी – कवि कुशललाभ (मारवाड़ी भाषा का उल्लेख)
आइने-अकबरी – अबुल फज़ल (मारवाड़ी भाषा का उल्लेख)
दी एनाल्स एण्ड एंटीक्वीटिज ऑफ राजस्थान – कर्नल जेम्स टॉड (1829ईस्वी) द्वारा लिखित।
– राजपूताना क्षेत्र के लिए राजस्थान, रायथान, रजवाड़ा शब्दों का उल्लेख हैं।
– इसमें सर्वप्रथम किसी क्षेत्र विशेष के लिए राजस्थान शब्द का प्रयोग किया गया ।
जॉर्ज थॉमस – राजस्थान के लिए सर्वप्रथम (1805ईस्वी) ‘राजपूताना’ शब्द का प्रयोग किया।
जॉर्ज अब्राहम ग्रियर्सन – राजस्थान क्षेत्र की भाषा के लिए सर्वप्रथम ‘राजस्थानी’ शब्द का प्रयोग (वर्ष 1912) किया।
– उन्होंने राजस्थानी भाषा का सर्वप्रथम वैज्ञानिक अध्ययन किया।
राजस्थानी भाषा उत्पत्ति :-
– राजस्थानी भाषा की उत्पत्ति शौरसेनी प्राकृत के गुर्जरी अपभ्रंश से हुई।
– डॉ. जॉर्ज अब्राहम एवं पुरुषोत्तम मेनारिया ने राजस्थान भाषा की उत्पत्ति शौरसेनी प्राकृत के नागरी अपभ्रंश से होना बताई है।
राजस्थान भाषा का वर्गीकरण | |
जॉर्ज अब्राहम ग्रियर्सन | डॉ. एल.पी. टेस्सीटोरी |
राजस्थानी भाषा के 5 प्रकार बताए1. उत्तर-पूर्वी राजस्थानी2. मध्य-पूर्वी राजस्थानी3. दक्षिणी-पूर्वी राजस्थानी4.पश्चिमी-दक्षिणी राजस्थानी5. पूर्वी राजस्थानी | राजस्थानी भाषा के 2 प्रकार बताए1. पूर्वी राजस्थानी2. पश्चिमी राजस्थानी |
राजस्थानी भाषा की प्रमुख बोलियाँ :-
1. मारवाड़ी बोली:-
– उपबोलियाँ :- मेवाड़ी, बागड़ी, शेखावाटी, गोड़वाड़ी, थली, नागौरी, देवड़ा वाटी, खैराडी
– उत्पत्ति – 8वीं सदी में शौरसेनी प्राकृत के गुर्जरी अपभ्रंश से
– प्राचीन नाम – मरुभाषा।
– प्राचीनतम प्रमाण – कुवलयमाला ग्रन्थ (उद्योतन सूरी द्वारा रचित) से।
– क्षेत्र – जोधपुर के आसपास का क्षेत्र (पाली, जैसलमेर)।
– अन्य क्षेत्र – नागौर, बाड़मेर, बीकानेर, जालोर, सिरोही।
– यह राज्य में सर्वाधिक बोली जाने वाली बोली है।
– इस भाषा का साहित्यिक रूप डिंगल भाषा है।
– प्राचीन जैन साहित्य और मीराबाई के पद इसी भाषा में हैं।
– मारवाड़ी बोली मधुर व मीठी बोली हैं। (कर्णप्रिय)
प्रमुख उपबोलियाँ :-
1. मेवाड़ी बोली :-
– मेवाड़ क्षेत्र में – उदयपुर, राजसमंद, भीलवाड़ा, चित्तौड़गढ़ जिलों में बोली जाती है।
– यह राजस्थान की दूसरी सबसे प्राचीन बोली तथा दूसरी महत्त्वपूर्ण बोली है।
– महाराणा कुम्भा ने विजय स्तम्भ पर इसी भाषा में नाटक लिखे हैं।
2. थली बोली :- बीकानेर के आस-पास बोली जाती है।
3. खैराड़ी :- यह बोली ढूँढाड़ी, मेवाड़ी और हाड़ौती का मिश्रण है।
– केन्द्र – शाहपुरा (भीलवाड़ा), बूँदी
– यह मीणाओं की प्रिय बोली है।
4. वागड़ी :- डूँगरपुर तथा बाँसवाड़ा में बाली जाने वाली बोली।
– प्रभाव – मेवाड़ी तथा गुजराती बोली का
– उपबोली – भीली बोली
– भीलों की प्रिय बोली
5. शेखावाटी :- सीकर, चूरू व झुंझुनूँ क्षेत्र में
– यह खड़ी व कर्कश बोली है।
6. गोडवाड़ी :- गोडवाड़ प्रदेश में (लूणी नदी के खारे पानी का अपवाह क्षेत्र)
– क्षेत्र – जालोर, पाली, सिरोही
– प्रमुख केन्द्र – बाली (पाली)
– ‘बीसलदेव रासो’ (नरपति नाल्ह द्वारा रचित) नामक ग्रंथ इसी बोली में रचित है।
7. देवड़ावाटी :- सिरोही के देवड़ा शासकों की बोली।
– क्षेत्र – सिरोही।
– उपनाम – सिरोही बोली।
8. ढूँढाड़ी बोली:-
उपबोलियाँ:- तोरावाटी, राजावाटी, नागर चोल, काठेड़ी, चौरासी, उदयपुरवाटी, हाड़ौती, अजमेरी, किशनगढ़ी।
– उपनाम – झाड़शाही बोली/जयपुरी बोली।
– क्षेत्र – जयपुर, आमेर, दौसा, टोंक, किशनगढ़।
– इस बोली पर ब्रजभाषा और गुजराती भाषा का प्रभाव हैं।
– ढूँढाड़ी बोली का सबसे प्राचीतम प्रमाण 18वीं सदी के ग्रन्थ ‘आठ देस गूजरी’ नामक ग्रन्थ में मिलता है।
उपबोलियाँ :-
(1) तोरावाटी बोली – कांतली नदी का अपवाह क्षेत्र तोरावाटी प्रदेश कहलाता है। यह इस प्रदेश में बोली जाने वाली भाषा है।
– क्षेत्र – जयपुर व सीकर का सीमावर्ती क्षेत्र।
(2) किशनगढ़ी – किशनगढ़ के आस-पास।
(3) अजमेरी – अजमेर जिले के गाँवों की बोली ।
(4) राजावाटी – सवाई माधोपुर – जयपुर के सीमावर्ती क्षेत्र में बोली जाने वाली बोली।
(5) काठोड़ी – जयपुर-दौसा का सीमावर्ती क्षेत्र में।
(6) चौरासी – बूँदी क्षेत्र में।
(7) नागर चोल – टोंक-जयपुर के सीमावर्ती क्षेत्र में।
(8) उदयपुरवाटी – झुंझुनूँ-जयपुर के सीमावर्ती क्षेत्र में।
(9) हाड़ौती – ढूँढाड़ी की उपबोली।
– क्षेत्र – हाड़ौती क्षेत्र – कोटा, बूँदी, बाराँ, झालावाड़।
– कवि सूर्यमल्ल मीसण ने अपने काव्य ग्रन्थों में इसी बोली का प्रयोग किया हैं।
– एम. केलांग ने 1875 ईस्वी में अपनी पुस्तक ‘हिन्दी ग्रामर’ में हाड़ौती शब्द का भाषा के अर्थ में सर्वप्रथम प्रयोग किया।
3. मेवाती बोली :-
– क्षेत्र – अलवर व भरतपुर (मेवात क्षेत्र)।
– मेव जाति के मुसलमानों द्वारा बोली जाती है।
– उत्पत्ति/विकास की दृष्टि से यह पश्चिमी हिन्दी और राजस्थानी बोली के मध्य सेतु का कार्य करती हैं।
– चरणदासी संतों का साहित्य तथा लालदासी संतों का साहित्य इसी भाषा में हैं।
– ‘सहज प्रकाश’, ‘सोलह तिथि’, ‘दयाबोध’ तथा ‘विनयमालिका’ नामक ग्रन्थ इसी बोली में रचित हैं।
4. मालवी बोली :-
– यह मधुर व कर्णप्रिय बोली है।
– क्षेत्र – कोटा, भैंसरोड़गढ़ (चित्तौड़गढ़), प्रतापगढ़।
– मालवा के राजपूतों द्वारा बोली जाने वाली भाषा।
– उपबोलियाँ :-
(i) नीमाड़ी बोली – दक्षिणी राजस्थान और उत्तरी मालवा क्षेत्र में
– उपनाम – दक्षिणी राजस्थानी बोली – डूँगरपुर और बाँसवाड़ा
(ii) रांगड़ी बोली – मालवी और मारवाड़ी का मिश्रण
– मालवा के राजपूतों की कर्कश बोली
5. अहीरवाटी/राठी बोली :-
– अलवर के मुंडावर व बहरोड़ तहसील में बोली जाती हैं।
– राठ क्षेत्र – हीरावाल जाति का निवास क्षेत्र।
– जयपुर की कोटपुतली तहसील क्षेत्र।
– यह बोली हरियाणा की बांगरू और राजस्थानी की मेवाती बोली के मध्य बोली जाती है।
– जोधराज का ‘हम्मीर महाकाव्य’ तथा ‘अलवर के रसखान (अलीबख्श)’ के ख्याल नाट्य इसी भाषा में लिखे हुए हैं।
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