स्वागत है आपका एक बार फिर से हमारे राजस्थान की परीतियोगी परीक्षाओ की तैयारी कर रहे छात्रों के लिए समर्पित एजुकेशन प्लेटफार्म पर। आज हम इस लेख में राजस्थानी साहित्य, इतिहास एवं राजस्थानी साहित्य की प्रमुख रचनाएँ के विषय में विस्तार पूर्वक अध्ययन करेंगे।
राजस्थानी साहित्य का विभाजन
राजस्थानी साहित्यिक स्रोतों को भाषा के आधार पर चार भागों में विभाजित किया गया है-
1. संस्कृत साहित्य
2. राजस्थानी साहित्य
3. जैन साहित्य
4. फारसी साहित्य
1. संस्कृत साहित्य-
ऐतिहासिक साहित्यिक स्रोतों में संस्कृत साहित्य का काफी महत्त्व है। मध्यकालीन राजस्थान में विभिन्न शासकों के दरबारों में संस्कृत एवं प्राकृत भाषाओं में साहित्यों की रचना की गई।
प्रारंभिक कालीन संस्कृत साहित्य –
अमरसार-16वीं सदी में पंडित जीवाधर द्वारा रचित इस ग्रंथ से महाराणा प्रताप एवं अमरसिंह-प्रथम के बारे में जानकारी प्राप्त होती है। यह ग्रंथ तत्कालीन समय में प्रचलित दास प्रथा, सैनिकों की वेशभूषा, मल्लयुद्ध एवं जानवरों की लड़ाइयों तथा तत्कालीन सांस्कृतिक जीवन के बारे में जानकारी प्रदान करता है।
हम्मीर महाकाव्य- नयनचंद्र सूरी द्वारा रचित काव्य। इस ग्रंथ में रणथम्भौर के चौहान वंश के इतिहास, अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण एवं हम्मीरदेव चौहान की वीरता का बखान होता है। इस महाकाव्य में चौहान राजपूतों की उत्पत्ति सूर्यवंश से बताई गई है।
राजविनोद-बीकानेर शासक राव कल्याणमल के दरबारी कवि सदाशिव भट्ट द्वारा 16वीं सदी में रचित ग्रंथ। इस ग्रंथ से बीकानेर वासियों के रहन-सहन, रीति-रिवाज, खान-पान एवं आर्थिक स्थिति की पर्याप्त जानकारी मिलती है।
पृथ्वीराज विजय-पृथ्वीराज चौहान तृतीय के आश्रित कवि पण्डित जयानक द्वारा 12वीं सदी के उत्तरार्द्ध में संस्कृत भाषा में रचित रचना। इस ग्रंथ से सपादलक्ष के चौहान शासकों की राजनीतिक एवं सांस्कृतिक उपलब्धियों का वर्णन मिलता है।
अजितोदय-जोधपुर शासक अजीतसिंह के दरबारी कवि जग्जीवन भट्ट द्वारा 17वीं सदी में रचित इस ग्रंथ में महाराजा जसवंत सिंह प्रथम और अजीत सिंह के समय में युद्धों, संधियों, विजयों एवं तत्कालीन समय में प्रचलित रीति-रिवाजों एवं परम्पराओं की जानकारी मिलती है।
एकलिंग महात्म्य-इस ग्रंथ का प्रथम भाग (राजवर्णन) महाराणा कुंभा द्वारा लिखा गया। इस ग्रंथ को पूरा कान्ह व्यास ने किया। इस ग्रंथ में गहलोत (गुहिल) वंश की वंशावली, वर्णाश्रम और वर्ण व्यवस्था पर प्रकाश डाला गया है। इस ग्रंथ की तुलना पुराणों से की गई है।
अमरकाव्य वंशावली- राजप्रशस्ति के लेखक रणछोड़ भट्ट द्वारा रचित इस ग्रंथ में बप्पा रावल से लेकर राणा राजसिंह तक के मेवाड़ी इतिहास, जौहर एवं दीपावली, होली आदि त्योहारों की जानकारी मिलती हैं।
भटि्ट काव्य-15वीं सदी में भटि्ट द्वारा रचित यह ग्रंथ तत्कालीन जैसलमेर राज्य की राजनीतिक एवं सामाजिक स्थिति की जानकारी प्रदान करता है। इसमें जैसलमेर के शासक भीम की मथुरा एवं वृंदावन की यात्रा का वर्णन मिलता है।
राजरत्नाकर-17वीं सदी में महाराणा राजसिंह के समय सदाशिव भट्ट द्वारा रचित इस ग्रंथ से महाराणा राजसिंह के समय के समाज चित्रण तथा दरबारी जीवन का वर्णन मिलता है।
प्रबंध चिंतामणि-भोज परमार के राजकवि मेरुतुंग द्वारा रचित इस ग्रंथ में 13वीं सदी के राजनीतिक एवं सांस्कृतिक जीवन का वर्णन मिलता है।
राजवल्लभ-महाराणा कुंभा के वास्तुशिल्पी मण्डन द्वारा रचित यह ग्रंथ नगर, ग्राम, दुर्ग, राजप्रासाद, मंदिर, बाजार आदि के निर्माण पद्धति पर प्रकाश डालता है। यह ग्रंथ कुल 14 अध्यायों में विभाजित हैं जो 15वीं सदी के सैनिक संगठन एवं मेवाड़ राज्य एवं स्थापत्य कला के बारे में जानकारी प्रदान करता है।
कर्मचंदवंशोत्कीर्तन काव्यम् – जयसोम द्वारा रचित इस ग्रंथ में बीकानेर के राठौड़ों का इतिहास एवं बीकानेर दुर्ग के निर्माण की जानकारी मिलती है। इस ग्रंथ से बीकानेर राज्य के विस्तार, दान-पुण्य से संबंधित संस्थाओं की जानकारी प्राप्त होती है।
अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य-
ग्रंथ | रचयिता |
राजप्रकाश | किशोरदास |
जगतविलास | नंदराम |
जगतसिंह काव्य | रघुनाथ |
वीरवंश रंग | यमुनादत्त शास्त्री |
जयसिंह कल्पद्रुम | देवभट्ट |
2. राजस्थानी साहित्य-
राजस्थानी साहित्यों में इतिहास से संबंधित कृतियाँ गद्य एवं पद्य दोनों में लिखी गई। ऐतिहासिक गद्य कृतियों में ख्यात, बात, विगत, वंशावली, हाल, हकीकत, बही आदि प्रमुख हैं। राजस्थानी पद्य कृतियों में रासो, विलास, रूपक, प्रकाश, वचनिका, वेलि, झमाल, झूलणा, दुहा, छंद आदि शामिल हैं।
ख्यात साहित्य – राजस्थानी परम्परा में ख्यात विस्तृत इतिहास होता है। यह वंशावली एवं प्रशस्ति लेखन का विस्तृत रूप होता है। अधिकांश ख्यात साहित्य गद्य में लिखा गया।
नैणसी की ख्यात – यह रचना साहित्य में सबसे पुरानी ख्यात है। यह ख्यात महाराजा जसवंतसिंह-प्रथम के दरबारी कवि मुहणोत नैणसी द्वारा डिंगल साहित्यिक भाषा में लिखी गई।
मुंडियार की ख्यात – यह रचना मारवाड़ के शासकों के बारे में जानकारी प्रदान करती है।
दयालदास की ख्यात – बीकानेर के महाराजा रतनसिंह के दरबारी कवि दयालदास सिंढायच द्वारा यह ग्रंथ लिखा गया जो बीकानेर के शासकों के बारे में जानकारी प्रदान करती है। इस ख्यात में बीकानेर के महाराजा रतनसिंह द्वारा अपने सामंतों को कन्या वध रोकने के लिए गया में प्रतिज्ञा करवाने का वर्णन मिलता है।
भाटियों की ख्यात- में जैसलमेर के भाटी शासकों के बारे में जानकारी मिलती है।
बांकीदास की ख्यात- को ‘जोधपुर राज्य की ख्यात’ भी कहा जाता है। बांकीदास ने इस ख्यात की रचना जोधपुर महाराजा मानसिंह के समय की।
रासो साहित्य – मध्य काल में विभिन्न राजस्थानी विद्वानों ने राजाओं एवं राजघरानों की प्रशंसा में विभिन्न काव्यों की रचना की, जिसे ‘रासो’ के नाम से जाना गया।
शत्रुसाल रासो – कवि डूँगरसी द्वारा राजस्थानी भाषा में रचित शत्रुसाल रासो नामक ग्रंथ बूँदी के इतिहास की जानकारी के लिए उपयोगी है।
प्रताप रासो – जाचीक जीवण द्वारा रचित प्रताप रासो में अलवर राज्य के संस्थापक राव राजा प्रतापसिंह के जीवन का विवरण मिलता है।
राणा रासो – दयालदास द्वारा रचित राणा रासो ग्रंथ में मुगल मेवाड़ संघर्ष की घटनाओं की जानकारी मिलती है।
छत्रपति रासो – कवि काशी छंगाणी द्वारा रचित छत्रपति रासो बीकानेर के इतिहास की जानकारी देता है। इस रासो में 1644 ई. में कर्णसिंह (बीकानेर) एवं अमरसिंह (नागौर) के मध्य लड़े गये युद्ध ‘मतीरे की राड़’ का वर्णन मिलता है।
मानचरित्र रासो – मानचरित्र रासो की रचना कवि नरोत्तम ने की, जो आमेर के शासक मानसिंह प्रथम का समकालीन था।
इस ग्रंथ में राजा मानसिंह प्रथम के जीवन व कार्यों के बारे में बताया गया है।
महाराणा सुजानसिंहजी रो रासो – जोगीदास द्वारा रचित इस रासो ग्रंथ में बीकानेर के महाराजा सुजानसिंह के जीवन एवं कार्यों के बारे में बताया गया है।
हम्मीर रासो – जोधराज द्वारा रचित इस ग्रंथ में रणथम्भौर के हम्मीर देव चौहान एवं अलाउद्दीन खिलजी के मध्य युद्ध का वर्णन मिलता है।
अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य –
ग्रंथ | रचयिता |
पृथ्वीराज रासो | चन्दबरदाई |
बीसलदेव रासो | नरपति नाल्ह |
क्याम खाँ रासो | कवि जान |
खुमाण रासो | दलपति विजय |
संगत रासो | गिरधर आसिया |
रतन रासो | कुंभकरण |
अन्य राजस्थानी साहित्य
कान्हड़दे प्रबंध– जालोर शासक अखैराज के दरबारी कवि पद्मनाभ द्वारा रचित इस ग्रंथ में जालोर शासक कान्हड़दे एवं अलाउद्दीन खिलजी के मध्य हुए युद्ध का वर्णन मिलता है।
राव जैतसी रो छंद – 13वीं सदी में बीठू सूजा द्वारा डिंगल भाषा में रचित नामक ग्रंथ में मुगल शासक कामरान एवं बीकानेर शासक राव जैतसी के मध्य हुए युद्ध का वर्णन एवं जैतसी की विजय का वर्णन मिलता है।
गजगुणरूपक – केशवदास द्वारा रचित इस ग्रंथ से जोधपुर शासक गजसिंह-प्रथम के बारे में जानकारी प्राप्त होती है।
दलपत विलास – बीकानेर महाराजा दलपतसिंह द्वारा रचित इस ग्रंथ से अकबर द्वारा हेमू का वध न किये जाने की जानकारी मिलती है।
पद्मावत – मलिक मोहम्मद जायसी द्वारा 1540 ई. में रचित ग्रंथ में अलाउद्दीन खिलजी के चित्तौड़ अभियान एवं रानी पद्मिनी के सौंदर्य का वर्णन मिलता है।
सूरजप्रकाश– कवि करणीदान ने इस ग्रंथ की रचना जोधपुरशासक अभयसिंह राठौड़ के समय की। इस ग्रंथ में अभयसिंह के समय के युद्धों का सजीव वर्णन मिलता है।
वीर विनोद – कविराज श्यामलदास द्वारा रचित ग्रंथ में मेवाड़ के गुहिलों के इतिहास का वर्णन है।
ग्रंथ | रचयिता |
बुद्धि विलास | बख्तराम शाह |
राज विलास | कविमान |
हम्मीर हठ, सुर्जन चरित्र | चन्द्रशेखर |
रुकमणि हरण, नाग दमण | सांयाजी झूला |
हम्मीर मदमर्दन | जयसिंह सूरी |
रघुनाथ रूपक | मंछाराम सेवग |
रसिक रत्नावली | नरहरिदास |
वीरमायण | बादर ढाढी |
3. जैन साहित्य
इस साहित्य से मध्यकालीन राजस्थान के धार्मिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक इतिहास के संबंध में महत्वपूर्ण जानकारी मिलती है। अधिकांश जैन साहित्य राजस्थानी अथवा संस्कृत भाषा में लिखा हुआ है जो रासो, बात, दोहा, चौपाई, चरित्र, गाथा आदि के रूप में वर्णित किया गया है।
कक्कड़ सूरी का साहित्य
कक्कड़ सूरी ने ‘नाभिनन्दन जिनोधार प्रबंध’ नामक पद्य काव्य 14वीं सदी में संस्कृत में लिखा जो पाँच अध्यायों में विभाजित हैं। इस साहित्य का मूल कथानक धर्मावलम्बी समरसेन था। इसमें उकेशपुर (वर्तमान में ओसियां) एवं कीरातबपुर (वर्तमान में किराडू) के मध्यकालीन नगरों के धार्मिक एवं आर्थिक जीवन का वर्णन मिलता है।
कक्कड़ सूरी की इस रचना से 14वीं शताब्दी के दक्षिण-पश्चिमी राजस्थान की आर्थिक एवं सामाजिक जानकारी प्राप्त होती है।
हेमरत्न सूरी का साहित्य
हेमरत्न सूरी द्वारा रचित गोरा-बादल री चौपाई ग्रंथ में राजपूत काल की युद्ध प्रणाली के बारे में जानकारी मिलती है।
वि.सं. 1645 में उन्होंने गोरा-बादल की रचना की और 25 वर्ष बाद ‘गोरा–बादल री चौपाई’ लिपिबद्ध की गई।
हेमरत्न ने ‘धदालीन राजपूत युद्ध’ प्रणाली का वर्णन किया है।
इसमें राणा प्रताप एवं साधु जेतमल के संबंध में जानकारी मिलती है।
लभ्योदेय उपाध्याय का साहित्य
लभ्योदेय उपाध्याय द्वारा रचित पद्मिनी चरित्र चौपाई से 17वीं सदी की सामाजिक व्यवस्था की जानकारी मिलती है।
इसमें गुरु एवं शिष्य के संबंध की जानकारी ‘मलेट सुंदर चौपाई’ में इन्होंने दी थी।
‘पद्मिनी चरित्र चौपाई’ राणा के मंत्री भागचंद्र के आह्वान पर वि.सं. 1706 से 1707 में लिखी।
सोम सूरी का साहित्य
– सोम सूरी द्वारा 15वीं सदी में रचित ग्रंथ ‘सौभाग्य महाकाव्य’ से तत्कालीन शिक्षा प्रणाली की जानकारी मिलती है। इसमें महाराणा कुंभा के काल की जानकारी मिलती है।
– इसमें देवाकूल पटका (देलवाड़ा) के धार्मिक एवं व्यापारिक जीवन की जानकारी मिलती है।
– इस काव्य में मेवाड़ शैली की राजस्थानी चित्रकला के उद्भव एवं विकास की जानकारी मिलती है।
समय सुंदर का साहित्य
– समय सुन्दर द्वारा रचित सिंहल सूत्र एवं वल्कल चिरी नामक ग्रंथ से16वीं सदी की सामाजिक स्थिति के बारे में जानकारी मिलती है।
– 16वीं शताब्दी की राजधानी तथा गुजराती लोककथाओं का संग्रह तीन कृत्यों में लिपिबद्ध किया गया था। मेड़ता में वि.सं. 1672 में ‘शिम्हलसूत्र’ लिखा। जैसलमेर में वि.सं. 1681 में बाल्करघिरी की रचना की। जालोर में संवत् 1695 में चम्पक सेठ की रचना की।
नयनचंद्र सूरी द्वारा रचित साहित्य
– नयनचन्द्र सूरी द्वारा 14 सर्गों में लिखी हम्मीर महाकाव्य ग्रंथ में रणथम्भौर के चौहान शाखा के राजपूत राजाओं का लिपिबद्ध वर्णन मिलता है।
दौलत विजय का साहित्य
– इन्होंने वि.सं. 1767 से 1790 के बीच ‘खुमाण रासो’ की रचना की इसमें मेवाड़ के गुहिल वंशीय राणाओं की वंशावली मिलती है।
अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य
ग्रंथ | रचयिता |
प्रबंध चिंतामणि | मेरुतुंग |
यमकुमार चौपाई | हेमरत्न सूरी |
हरिमेखला | भाहुक |
समराइच्छकथा, धुर्ताख्यान,विरागंद कथा, यशोधर चरित | हरिभद्र सूरी |
प्रबंधकोष | राजशेखर |
कुवलयमाला | उद्योतन सूरी |
देशीनाममाला, शब्दानुशासन | हेमचन्द्र सूरी |
कुमारपाल चरित, धर्मोदेशमाला, हम्मीर मदमर्दन | जयसिंह सूरी |
4. फारसी साहित्य-
प्रमुख फारसी साहित्य | ||||
क्र.सं | साहित्यिक रचना | रचनाकार | वर्णन | |
1. | तबकाते नासिरी | काजी मिनहाज-उस-सिराज | यह पुस्तक जालोर एवं नागौर में मुस्लिम शासन के बारे में जानकारी प्रदान करती हैं। | |
2. | ताज-उल-मासिर | हसन निजामी | इस ग्रंथ से अजमेर नगर की समृद्धि एवं मुस्लिम आक्रमण से होने वाली बर्बादी का पता चलता है। | |
3 | तारीख-ए-फिरोजशाही | जियाउद्दीन बरनी | इस ग्रंथ से रणथम्भौर एवं उस पर होने वाले आक्रमण की जानकारी मिलती है। | |
4. | खजाईन-उल-फुतूह | अमीर खुसरो | इस ग्रंथ से अलाउद्दीन खिलजी के चित्तौड़ व रणथम्भौर आक्रमण की जानकारी मिलती है। | |
5. | तुजुक-ए-बाबरी (बाबरनामा) | बाबर की आत्मकथा | (i) तुर्की भाषा में लिखित(ii) इसमें पानीपत के प्रथम युद्ध एवं खानवा युद्ध की जानकारी मिलती है। | |
6. | हुमायूँनामा | गुलबदन बेगम (हुमायूँ की बहन) | इस ग्रंथ से हुमायूँ के मेवाड़ एवं मारवाड़ शासकों के साथ संबंधों एवं शेरशाह सूरी से परास्त होने की जानकारी मिलती है। | |
7. | अकबरनामा | अबुल फजल | इस ग्रंथ से राजस्थान के मेवाड़, कोटा, जयपुर, सांभर, अजमेर आदि नगरों में अकबर द्वारा करवाए गए कार्य एवं अकबर के साथ राजपूत राजकुमारियों के विवाह की जानकारी मिलती है। | |
8. | आईन-ए-अकबरी | अबुल फजल | इस ग्रंथ से राजस्थानी वेशभूषा एवं वस्त्रों के नाम एवं राजस्थान में मनाए जाने वाले त्योहारों एवं मुद्राओं के बारे में जानकारी मिलती है। | |
9. | मुन्तखब-उत-तवारीख | अब्दुल कादिर बदाँयूनी | इस ग्रंथ में हल्दीघाटी युद्ध का सजीव वर्णन मिलता है। इस ग्रंथ से हरकू बाई का विवाह अकबर के साथ होने का, जौहर प्रथा एवं रक्षाबंधन पर्व का वर्णन मिलता है। | |
10. | तारीख-ए-शेरशाही | अब्बास खाँ सरवानी | मालदेव एवं शेरशाह के मध्य हुए गिरि-सुमेल युद्ध में लेखक स्वयं मौजूद था। | |
11. | इकबालनामा | मोत्तमिद खाँ | इस ग्रंथ में शाहजहाँ द्वारा मेवाड़ में की गई हत्याओं एवं आर्थिक बर्बादी की जानकारी मिलती है। | |
12. | शाहजहाँनामा | इनायत खाँ | इस ग्रंथ में मुगल मेवाड़ संधि की जानकारी मिलती है। | |
13. | तारीख-ए-राजस्थान | कालीराम कायस्थ (अजमेर) | इस ग्रंथ को ‘नसबुल अनसाब’ के नाम से भी जाना जाता है। | |
14. | तबकात-ए-अकबरी | निजामुद्दीन अहमद | यह ग्रंथ शेरशाह की सेना के टुकड़ी के नागौर पहुँचने की जानकारी प्रदान करता है। | |
15. | फतूहात-ए-आलमगीरी | ईसरदास नागर | इस ग्रंथ से दुर्गादास राठौड़ की कूटनीतिज्ञता का पता चलता है। | |
16. | तुजुक-ए-जहाँगीरी | जहाँगीर | यह जहाँगीर की आत्मकथा है जिसमें आमेर के राजा भगवंतदास का नाम भगवानदास लिखा है। |
राजस्थानी साहित्य को सीताराम लालस के वर्गीकरणानुसार तीन भागों में विभाजित किया गया है –
1. प्राचीन काल/वीरगाथा का काल (8वीं सदी – 15वीं सदी तक) ग्रन्थ-
नेमीनाथ बारहमासा
कवि पाल्हण द्वारा रचित ग्रंथ।
भाषा – मारू-गुर्जर भाषा का प्रथम बारहमासा।
छंद/दोहे – 70
इसमें जैन धर्म के 22 वें तीर्थंकर नेमीनाथ का वर्णन है।
पृथ्वीराज रासो
चन्दबरदाई (ग्रन्थ को पूरा इनके पुत्र जल्हण ने किया) द्वारा रचित।
भाषा – पिंगल साहित्यिक भाषा (दोहों की भाषा)
पृथ्वीराज रासो नामक ग्रंथ में 4 राजपूत वंशों (गुर्जर-प्रतिहार, परमार, चालुक्य एवं चौहान) की उत्पत्ति गुरु वशिष्ठ के आबू पर्वत के अग्निकुण्ड से बताई गई है।
इसमें अजमेर के चौहान शासकों तथा पृथ्वीराज चौहान तृतीय का वर्णन है।
इसमें पृथ्वीराज-तृतीय व संयोगिता के प्रेम सम्बन्धों का उल्लेख मिलता हैं।
रणमल छंद
श्रीधर व्यास द्वारा रचित ग्रंथ।
भाषा – पिंगल साहित्यिक भाषा।
छंद – 70।
मारवाड़ शासक राव रणमल और पाटन (गुजरात) के शासक मुजफ्फरशाह के मध्य युद्ध का वर्णन। (रणमल की इस युद्ध में विजय का भी उल्लेख)
दुर्गा सप्तसती ग्रन्थ की रचना भी श्रीधर व्यास ने की। इसमें राम रावण युद्ध का वर्णन मिलता है।
बीसलदेव रासो
नरपति नाल्ह द्वारा रचित ग्रंथ।
भाषा – गौड़वाड़ी।
बीसलदेव चौहान और धार की राजकुमारी राजमति के प्रेम संबंधों का वर्णन (जो काल्पनिक) हैं।
ढोला मारू रा दूहा/दोहा
कवि कल्लोल द्वारा रचित ग्रंथ।
डिंगल साहित्यिक भाषा।
इसमें ढोला और मारू के विवाह का वर्णन हैं।
इस ग्रंथ में ढोला की आयु – 3 वर्ष तथा
मारू की आयु – 1.5 वर्ष बताई गई।
अचलदास खींची री वचनिका
शिवदास गाडण द्वारा गद्य शैली में रचित हैं।
चारण साहित्य में गद्य शैली की प्रथम रचना हैं।
इसमें 1423 ईस्वी में गागरोन के शासक अचलदास खींची और मांडू के शासक होशंगशाह के मध्य हुए युद्ध का आँखों देखा वर्णन है।
इस युद्ध में शिवदास गाडण मौजूद थे।
हम्मीर महाकाव्य
नयनचन्द्र सूरी द्वारा रचित ग्रंथ।
इस ग्रन्थ में रणथम्भौर और नाडोल के चौहान शासकों के बारे में जानकारी मिलती है।
इस ग्रन्थ के अनुसार मुहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज चौहान-तृतीय को अजमेर में बन्दी बनाकर रखा था।
ब्रह्म स्फुट सिद्धांत
ब्रह्मगुप्त (भीनमाल निवासी) द्वारा लिखा गया।
वे खगोल शास्त्री थे।
शिशुपाल वध
कवि माघ (भीनमाल) निवासी द्वारा रचित।
पहले डाकू थे बाद में वे कवि बने।
2. मध्यकाल
इसे साहित्य एवं साहित्यकारों का काल भी कहा जाता है। (15वीं सदी–19वीं सदी)
साहित्य/साहित्यकार
बीठू सूजा
बीकानेर के शासक राव जैतसी के दरबारी कवि थे।
प्रमुख ग्रन्थ – राव जैतसी रो छंद
पिंगल भाषा में रचित।
इसमें राव बीका, लूणकरण एवं राव जैतसी के बारे में वर्णन मिलता है।
इस ग्रंथ में बीठू सूजा ने लूणकरण को ‘कलियुग का कर्ण’ कहा है।
इस ग्रंथ में राव जैतसी के प्रमुख सैन्य अभियानों की जानकारी मिलती है।
इसमें 1534 ईस्वी में कामरान और राव जैतसी के मध्य हुए युद्ध का वर्णन तथा राव जैतसी की विजय का उल्लेख मिलता हैं।
मुहणोत नैणसी
यह जोधपुर के जैन परिवार से संबंध रखते थे।
यह जोधपुर के महाराजा जसवन्तसिंह-प्रथम के दरबारी कवि थे।
देवी मुंशीप्रसाद ने इन्हें – “राजपूताने का अबुल फज़ल” कहा हैं।
प्रमुख ग्रन्थ
1. मुहणोत नैणसी री ख्यात
2. मारवाड़ री परगना री विगत (राजस्थान का गजेटियर)
मुहणोत नैणसी महाराजा जसवन्तसिंह-प्रथम के साथ दक्षिण भारत गए जहाँ जसवन्तसिंह-प्रथम व मुहणोत नैणसी के मध्य विवाद हो गया तथा महाराजा ने नैणसी को बन्दी बना दिया तथा नैणसी व उसके भाई सुन्दरसी ने आत्मग्लानि के कारण आत्महत्या कर ली।
अबुल फज़ल
नागौर के शेख मुबारक खाँ के पुत्र थे।
इनके भाई फैजी तथा वह स्वयं अकबर के दरबारी नवरत्नों में शामिल थे।
अबुल फज़ल जहाँगीर के साथ दक्षिण भारत गए जहाँ जहाँगीर के साथ विवाद हो गया था तथा जहाँगीर के कहने पर बुन्देलखण्ड के शासक वीरसिंह बुन्देला ने अबुल फज़ल की हत्या कर दी।
ग्रन्थ
1. अकबरनामा (फारसी भाषा) – 21 अध्याय (पहला अध्याय आइन-ए-अकबरी)
2. तुजुक-ए-बाबरी (तुर्की भाषा)का – फारसी में अनुवाद किया।
कवि दुरसा आढ़ा
अकबर के दरबारी कवि थे किन्तु बाद में अकबर का दरबार छोड़कर सिरोही के शासक सुरताण देवड़ा के दरबार में चले गए।
कवि दुरसा आढ़ा ने राजस्थान के उन तीन शासकों के बारे में खूब लिखा जिन्होंने स्वतंत्रता की लड़ाई अकबर से लड़ी-1. राव चन्द्रसेन, 2. महाराणा प्रताप और 3. सुरताण देवड़ा
प्रमुख ग्रन्थ –
1. विरुद्ध छहतरी
2. किरतार बावनी
3. झूलणा राव अमरसिंह गजसिंहघोत री
कवि बांकीदास
यह मारवाड़ के शासक महाराजा मानसिंह के दरबारी कवि व मित्र थे।
ग्रन्थ
1. बांकीदास री ख्यात
2. भूरजाल भूषण
3. नीति मंजरी
4. कुकवि बत्तीसी
5. दातार बावनी
6. मानजसोमण्डन
यह राजस्थान के प्रथम कवि थे, जिन्होंने सर्वप्रथम अंग्रेजों के विरुद्ध चेतावनी के गीत लिखे।
पृथ्वीराज राठौड़
डॉ. एल. पी. टैस्सीटोरी ने पृथ्वीराज राठौड़ को डिंगल का हैरोस कहा।
यह बीकानेर शासक राव कल्याणमल के पुत्र तथा महाराजा रायसिंह के भाई थे।
1570 ईस्वी में पृथ्वीराज राठौड़ अकबर की सेवा में आगरा चले गए तथा यह अकबर के दरबारी कवि बन गए।
प्रमुख ग्रन्थ
1. वेलि क्रिसन रुकमणि री – इस ग्रंथ 4000 दोहे
इस ग्रंथ की रचना गागरोन दुर्ग में की। इस ग्रंथ में श्रीकृष्ण एवं रुक्मिणी के विवाह का वर्णन मिलता है। दुरसा आढ़ा ने इस ग्रंथ को ‘5वाँ वेद’, ‘19वाँ पुराण’तथा ‘109वाँ उपनिषद्’ की उपमा दी है।
2. दसम भागवत का दूहा
3. गंगा लहरी
4. कल्ला जी रायमलोत री कुंडलियाँ
5. दशरथ रावउत
अकबर ने पृथ्वीराज राठौड़ को गागरोन का दुर्ग जागीर में दे दिया।
कन्हैयालाल सेठिया ने पृथ्वीराज राठौड़ और महाराणा प्रताप के हुए मध्य संवाद पर ‘पीथल–पाथल’ नामक कविताएँ लिखी जिसमें ‘पाथल’ महाराणा प्रताप को तथा ‘पीथल’ पृथ्वीराज राठौड़ को संबोधित किया।
महाराणा कुम्भा – संगीत शास्त्र पर 4 ग्रन्थ लिखे।
1. संगीतराज (इन दोनों ग्रंथों पर टीका हैहलिखी)
2. संगीतमीमांसा (इन दोनों ग्रंथों पर टीका हैहलिखी)
3. सूड़ प्रबंध
4. संगीत रत्नाकर
सवाई प्रतापसिंह
यह जयपुर के शासक थे तथा भगवान श्रीकृष्ण के बहुत बड़े भक्त थे।
वे ‘ब्रजनिधि’ नाम से कविताएँ लिखते थे।
सवाई प्रतापसिंह की सभी कविताओं का संग्रह –‘ब्रजनिधि ग्रन्थावली’ में संगृहीत है।
महाराजा सावंतसिंह
यह किशनगढ़ के शासक थे तथा भगवान कृष्ण के भक्त थे।
इन्होंने अपने राजपाट का त्याग करके संन्यास ले लिया और वृंदावन चले गए और अपना नाम ‘नागरीदास’ रख लिया।
महाराणा सावंतसिंह ने ‘नागर समुच्चय’ के नाम से कविताएँ लिखी।
महाराव बुद्धसिंह
यह बूँदी के शासक थे तथा उन्होंने कृष्ण भक्ति पर ‘नेहतरंग’ नामक ग्रन्थ की रचना की।
महाराजा जसवन्तसिंह प्रथम
यह मारवाड़ के शासक थे।
इन्होंने रीति और अलंकार से युक्त ‘भाषा भूषण’ नामक ग्रन्थ की रचना की।
अन्य प्रमुख रचनाएँ
आनंद विलास – सिद्धांत बोध
अनुभव प्रकाश – चन्द्र प्रबोध
नायिका भेद
3. आधुनिक काल/इतिहासकारों का काल (19वीं सदी से वर्तमान तक)
कर्नल जेम्स टॉड
राजस्थान का इतिहास अंग्रेजी भाषा में लिखा।
जन्म – 20 मार्च, 1782 इलिंग्टन प्रान्त (इंग्लैण्ड)
मूलत: स्कॉटलैंड के निवासी थे।
माता – मैरी हेडली
पिता – जेम्स (इंग्लैण्ड आर्मी का सैनिक)
पत्नी – क्लेटबर्क
गुरु – यति ज्ञानचन्द्र (मांडलगढ़, भीलवाड़ा)
घोड़े का नाम – अल्बुर्ज
उपाधि – कर्नल
पारिवारिक उपाधि – टॉड
उपनाम – ‘घोड़े वाले बाबा’, ‘राजस्थान इतिहास के जनक’
इन्होंने राजस्थान का इतिहास सर्वप्रथम सम्पूर्ण, व्यवस्थित एवं क्रमबद्ध तरीके से लिखा।
टॉड 1798 ई. में सर्वप्रथम भारत के बंगाल प्रांत में आए।
1806 ई. सर्वप्रथम राजस्थान के मांडलगढ़ (भीलवाड़ा) में मेवाड़ व हाड़ौती के पॉलिटिकल एजेंट बनकर आए।
1822 ई. में वापस इंग्लैण्ड जाते समय मानमौरी शिलालेख साथ लेकर गए लेकिन भार अधिक होने के कारण मार्ग में ही समुद्र में फेंक दिया।
मृत्यु –नवम्बर, 1835
कर्नल जेम्स टॉड ने भारत में 24 वर्षों तक नौकरी की।
कर्नल जेम्स टॉड की पुस्तक
1. एनल्स एण्ड एण्टीक्वीटीज ऑफ राजस्थान (1829 ई.)
2. सेन्ट्रल एंड वेस्टर्न राजपूत स्टेट्स (1832 ई.)
सम्पादनकर्ता – विलियम क्रुक (दोनों पुस्तकों का)
यतिज्ञानचन्द्र को समर्पित की।
पुस्तक में उल्लेख
शौर्य और बलिदान के लिए यूरोप की थर्मोपल्ली जैसे अन्य कोई रणभूमि नहीं, लेकिन राजस्थान में पग-पग पर वीरों की हड्डियाँ धूमिल है तथा थर्मोपल्लियाँ हैं।
उन्होंने राजस्थान, रायथान, रजवाड़ा शब्दों का प्रयोग किया।
राजस्थान में शायद कोई छोटा सा राज्य ऐसा नहीं है जहाँ थर्मोपल्ली जैसी रणभूमि और लियोनाइडस जैसा वीर पुरुष पैदा नहीं हुआ हो।
1839 ईस्वी में क्लेटवर्क द्वारा प्रकाशित व सम्पादित पुस्तक ‘Travels of Western India’ में कर्नल टॉड के भारत से संबंधित स्मृतियों का उल्लेख किया गया।
कवि सूर्यमल्ल मीसण
आधुनिक राजस्थानी काव्य/साहित्य के नवजागरण के पुरोधा/जनक।
वह बूँदी के शासक महाराव रामसिंह-द्वितीय के दरबारी कवि थे।
प्रमुख ग्रन्थ
i. वंश भास्कर
इसमें बूँदी राज्य का इतिहास वर्णित है।
गद्य शैली में लिखित हैं।
बड़ा ग्रन्थ होने के कारण विश्वकोषीय ऐतिहासिक ग्रन्थ कहा जाता है।
यह ग्रन्थ मुरारीदान द्वारा पूर्ण किया गया।
ii. वीर सतसई
इस ग्रन्थ का आरम्भ ‘समय पल्टी शीश’ नामक दोहे से होता है।
सूर्यमल्ल मीसण ने यह ग्रन्थ भारतीय जनमानस में जागृति लाने के लिए तथा राजस्थान के रणबांकुरों (क्रांतिकारी) से क्रांति का उल्लेख भी किया है।
iii. बलवंत विलास
यह एक चरित्र ग्रन्थ है।
महाराजा बलवन्त सिंह का चरित्र वर्णन किया गया।
iv. रामजाट/रामरंजाट– यह ग्रन्थ सूर्यमल्ल मीसण ने 10 वर्ष की आयु में लिखा।
v. मयूर चन्द
कन्हैयालाल सेठिया
राजस्थानी भाषा के प्रबल समर्थक व विद्वान।
जन्म – सन् 1919, सुजानगढ़ (चूरू)
प्रमुख ग्रन्थ
पीथल-पाथल – लीलटांस
धरती-धोरा री – काको रोड रो
हल्दीघाटी – मींझर
हेमाणी – मायड़ रो हेलो
वनफल
प्रमुख पुरस्कार-
i. पद्मश्री– भारत सरकार द्वारा प्रदत्त
ii. राजस्थान रत्न – राजस्थान सरकार द्वारा। (मरणोपरान्त)
iii. ज्ञानपीठ पुरस्कार – राजस्थानी साहित्य, भाषा एवं संस्कृति अकादमी – बीकानेर द्वारा।
iv. सूर्यमल्ल मीसण अवॉर्ड – राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी – बीकानेर द्वारा।
v. राजस्थानी साहित्य अकादमी पुरस्कार
कन्हैयालाल की स्मृति में प्रतिवर्ष कन्हैयालाल सेठिया फाउण्डेशन द्वारा प्रशस्ति पत्र तथा 1 लाख रुपये का नकद पुरस्कार दिया जाता है।
गौरीशंकर हीराचन्द ओझा (वर्ष 1863-1947)
उपनाम
‘राजस्थान के प्रथम पूर्ण इतिहासकार’
‘राजस्थान का ग्रिबन’
जन्म – 1883 ई. रोहिड़ा गाँव (सिरोही)
शिक्षा – मुम्बई/बम्बई में रहकर प्राप्त की।
गौरीशंकर उदयपुर में महाराणा सज्जनसिंह के दरबार में रहे तथा कविराज श्यामलदास दधवाड़िया इनके गुरु रहे ।
कर्नल जेम्स टॉड द्वारा अंग्रेजी भाषा में लिखे गए। राजस्थान की रियासतों के इतिहास को ‘राजपूताने का इतिहास’ नामक ग्रंथ में संकलित किया।
गौरीशंकर का प्रसिद्ध ग्रन्थ – भारतीय प्राचीन लिपिमाला।
उन्होंने ‘मुहणोत नैणसी री ख्यात‘ग्रंथ का सम्पादन किया।
वर्ष 1914 में अंग्रेजों ने इन्हें ‘रायबहादुर’ की उपाधि दी।
भारतीय लिपि का शास्त्र अंकन कर अपना नाम ‘गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड’ में लिखवाया।
शंकरदान सामौर
जन्म – बोबासर गाँव, (चूरू) में हुआ।
शंकरदान सामौर ब्रिटिश सत्ता के खिलाफ मुखर होकर आवाज उठाने आधुनिक काल के कवियों में अग्रणी थे।
रचनाएँ
सगती सूजस,भागीरथी महिमा, वखतरो बायरो,देसदर्पण,साकेत सर्तक।
इकराम राजस्थानी
गजल-संग्रह
अक्षरों के इर्द–गिर्द, सुकून, दर्द के रंग
काव्य संग्रह
इस सदी का आखिरी पन्ना, खुले पंख
एक रहा है एक रहेगा अपना, हिन्दुस्तान
अमर है जिनसे राजस्थान
कन्हैयालाल सहल –
रचनाएँ
चौबोली, हरजस बावनी, प्रवाद
राजस्थानी कहावतें राजस्थान के ऐतिहासिक
मेघराज मुकुल
जन्म – राजगढ़ (चूरू) में हुआ।
रचनाएँ
सैनाणी, कोडमरे, आण री बात, दुर्गावती, चँवरी, सैनाणी री जागी जोत, किरत्या
डॉ. नारायण सिंह भाटी
जन्म – मालूंगा गाँव (जोधपुर) में हुआ।
रचनाएँ
ओलू, साँझ, दूर्गादास, जीवनधन
बरसाँ रा डीगोड़ा डूंगर लाघियां
मिनख ने समझाणो दोरो है
इनकी रचना ‘दुर्गादास’ राजस्थानी का प्रथम मुक्तछंद काव्य है।
इन्होंने सन् 1955 में चौपासनी (जोधपुर) में ‘राजस्थानी शोध संस्थान’ की स्थापना की।
सत्यप्रकाश जोशी
रचनाएँ
दीवा काँपै क्यू, लस्कर नाथामै, मारू, ऊँजली, राधा, बोल भारमली।
चन्द्र सिंह ‘बिरकाली’
जन्म – बिरकाली गाँव (हनुमानगढ़) में हुआ।
रचनाएँ
साँझ, सीप, वाळसाद, दिलीप, चित्रांगद, काळजे री कोर जफरनामों।
इनकी काव्य रचना ‘बादळी’ आधुनिक राजस्थानी की प्रथम काव्यकृति है।
मणि मधुकर
इनका जन्म सन् 1942 में राजगढ़ चुरू में हुआ।
कविताएँ
कालो घोड़ो, नरक वाडो, सोजती गेट, अम्बादास रो चितराम, पगफैरो
रचनाएँ
सुधि सपनों के तीर, रसगंधर्व, खेलापालेमपुर
रांगेय राघव
जन्म – वर्ष 1923 में आगरा (U.P.) में हुआ।
रचनाएँ
घरौंदा, कब तक पुकारूँ, मुर्दों का टीला, विवाद मठ,तूफानों के बीच, प्रतिदान, चीवर, आज की आवाज, रामानुज, विरुढ़क स्वर्ण भूमि का यात्री
प्राचीन भारतीय परम्परा का इतिहास
श्रीलाल नथमल जोशी
इनका जन्म बीकानेर जिले में हुआ।
रचनाएँ
आभै पटकी, धोरां रो धोरी, एक बीनणी दो बींद, शरणागत मेंहंदी, कनीर और गुलाब
कहानियाँ
भाड़ेती, पारण्योडी कंवारी, मोलायाड़ी लाडी
पुरस्कार
बिहारी पुरस्कार
सीहा अवॉर्ड
पद्म श्री
राजस्थान रत्न (प्रथम राजस्थान रत्न पुरस्कार)
विजयदान देथा, कोमल कोठारी के साथ ‘रूपायन संस्थान’ के सह-संस्थापक थे।
लक्ष्मी कुमारी चूँडावत
जन्म –24 जून, 1916 को मेवाड़ रियासतके देवगढ़ ठिकाने (वर्तमान राजसंमद) में हुआ।
रचनाएँ
देवनारायण बगड़ावत की महागाथा, राजस्थान के रीति रिवाज, कै रे चकवा वात, मँझली रात, शांति के लिए संघर्ष, डूंगजी-जवाहरजी री बातां, लेनिन री जीवनी, मूमल, हिंदुकुश के उस पार
पुरस्कार –
सोवियत लैंड–नेहरू पुरस्कार
पद्मश्री पुरस्कार
‘फ्रॉम पर्दा टू द पीपल’ नामक पुस्तक फ्रांसेस टैफ्ट ने लिखी, जो कि लक्ष्मी कुमारी चूँडावत की जीवनी लिखी।
अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य ̶
राजस्थानी भाषा की प्रथम रचना –
‘भरतेश्वर बाहुबलिघोर’ ग्रंथ ब्रजसेन सूरी द्वारा रचित।
भाषा – मारू गुर्जर ।
भरत व बाहुबली के मध्य युद्ध का वर्णन।
संवत् का उल्लेख वाली राजस्थानी भाषा की प्रथम रचना –
‘भरतेश्वर बाहुबलि रास’ ग्रंथ शालिभद्र सूरी द्वारा रचित।
भाषा – मारू-गुर्जर।
राजस्थानी भाषा की वचनिका –
‘अचलदास खींची री वचनिका’ ग्रंथ शिवदास गाडण द्वारा रचित।
राजस्थान भाषा का प्रथम उपन्यास –
कनक सागर (शिवचन्द्र भरतिया)
प्रथम नाटक – केसर विलास (शिवचन्द्र भरतिया)
प्रथम कहानी – विश्रांत प्रवास (शिवचन्द्रभरतिया)
स्वतन्त्रता काल का प्रथम उपन्यास – आभैपटकी (श्रीलालनथमल जोशी)
आधुनिक राजस्थानी काव्य की प्रथम रचना – बादली (चन्द्रसिंह बिरकाली)