राजस्थान की प्रमुख नदियाँ एवं झीलें Lakes And Rivers Of Rajasthan In Hindi

नमस्कार आज हम राजस्थान की भूगोल से सम्बंधित महत्वपूर्ण अध्याय राजस्थान की प्रमुख नदियाँ एवं झीलें (Lakes And Rivers Of Rajasthan In Hindi) के विषय में अध्ययन करेंगे।

नदी किसे कहते हैं?

नदी- भूतल पर प्रवाहित होने वाली एक जलधारा है। हिमनद, झरना, झील या अनेक अन्य माध्यमों से बारिश का पानी प्राय: नदी निर्माण के प्रमुख स्त्रोत है।

राजस्थान की प्रमुख नदियाँ

राजस्थान की प्रमुख नदियाँ एवं झीलें Lakes And Rivers Of Rajasthan In Hindi

–  जलग्रहण क्षेत्र-

–  किसी नदी द्वारा विशिष्ट क्षेत्र से जल बहाकर लाना या जल की प्राप्ति करना जल ग्रहण क्षेत्र कहलाता है।

–  राजस्थान में जल ग्रहण की दृष्टि से नदियों का सही क्रम-

नदीप्रतिशत
बनास27.48
लुनी20.21
चम्बल17.21
माही09.46

नोट-

पूर्णत: राजस्थान में बहने वाली सबसे लम्बी नदी- बनास 480 किमी.

राजस्थान की सबसे लम्बी नदी- चम्बल 966 किमी.

–  सतही जल की दृष्टि से राजस्थान में नदियों का सही क्रम-

–  भारत के कुल जल भण्डार का राजस्थान में जल- 0.99%

–  भारत के सतही जल का राजस्थान में प्रतिशत – 1.16%

–  भारत में भूमिगत जल का राजस्थान में प्रतिशत- 1.70%

–  नोट- राजस्थान में भूमिगत जल अधिक होने के कारण ही यहाँ सर्वाधिक सिंचाई कुओं और नलकूपों द्वारा की जाती है।

–  जल की उपलब्धता की दृष्टि से राजस्थान में नदियों का क्रम है-

1. चम्बल

2. बनास

3. माही

4. लूनी

5. साबरमती

राजस्थान में तीन प्रकार का अपवाह तंत्र पाया जाता है-

1. आंतरिक प्रवाह तंत्र – 60%

2. बंगाल की खाड़ी नदी तंत्र – 23%

3. अरब सागरीय नदी तंत्र – 17%

(1) आंतरिक प्रवाह तंत्र

–  वे नदियाँ जिनका उद्गम स्थान निश्चित हो परन्तु समाप्ति (विलिन) स्थल निश्चित नहीं हो ऐसी नदियां आंतरिक प्रवाह की नदियाँ कहलाती हैं।

–  सम्पूर्ण भारत में केवल राजस्थान में आंतरिक प्रवाह तंत्र पाया जाता है। यह राजस्थान का सबसे बड़ा अपवाह तंत्र है जो 60 प्रतिशत है।

–  राजस्थान में आंतरिक प्रवाह तंत्र की नदियाँ मुख्यत: वर्षा पर निर्भर होती है।

आंतरिक प्रवाह तंत्र से संबंधित राजस्थान की प्रमुख नदियाँ

(i) घग्घर               (vi) रूपनगढ़

(ii) कांतली            (vii) मेंथा

(iii) काकनेय         (viii) ढूँढ

(iv) साबी              (ix) खण्डेला

(v) रूपारेल           (x) खारी

 (i) घग्घर नदी – (शिवालिक नदी या इण्डो ब्रह्म नदी)

–  इसके अन्य नाम- दृषद्वती नदी, प्राचीन सरस्वती नदी, मृत नदी है।

–  उद्गम– शिवालिक की पहाड़ियाँ, कालका (हिमाचल प्रदेश)।

–  राजस्थान में प्रवेश– टिब्बी, (हनुमानगढ़)।

–  अपवाह क्षेत्र– राजस्थान में हनुमानगढ़ और श्रीगंगानगर

–  घग्घर के प्रवाह क्षेत्र को हनुमानगढ़ में नाली’ कहा जाता है। (नाली इस अपवाह तंत्र के क्षेत्र में पायी जाने वाली भेंड की एक नस्ल है)

–  घग्घर नदी में बाढ़ आने पर इसका पानी फोर्ट अब्बास (पाकिस्तान) तक जाता है और वहाँ इसके प्रवाह क्षेत्र को हकरा कहते हैं।

–  हनुमानगढ़ में घग्घर नदी के किनारे सैन्धव सभ्यता के दो स्थल कालीबंगा और रंगमहल प्राप्त हुए हैं।

श्रीराम वाडरे  = सरस्वती नदी का प्राचीन मार्ग को खोजने के लिए नियुक्त किया गया।   
हनुवंता राव = सरस्वती नदी का प्राचीन मार्ग को खोजने के लिए नियुक्त किया गया।   

(नोट- घग्घर नदी राजस्थान में हिमालय से आने वाली एक मात्र नदी है)

घग्घर नदी की विशेषताएँ-

–  घग्घर नदी राजस्थान की आंतरिक प्रवाह की सबसे लम्बी 465 किमी. नदी है ।

–  घग्घर नदी द्वारा निर्मित मैदान को श्रीगंगानगर-हनुमानगढ़ में ‘पाट’ कहा जाता है। (घग्घर नदी का पाट-नाली कहलाता है)

–  नोट- भारत की सबसे लम्बी अंत: प्रवाही नदी- घग्घर राजस्थान की सबसे लम्बी अंत: प्रवाही नदी- कांतली

(ii) कांतली नदी-

–  शेखावाटी प्रदेश (चूरूझुंझुनूंसीकर) की मुख्य नदी-कांतली नदी पूर्णत: राजस्थान में बहने वाली आंतरिक प्रवाह की सबसे लम्बी नदी है (100 किमी)।

–  उद्गम – खण्डेला की पहाड़ियों (सीकर)  

–  सीकर, झुंझुनू में बहती हुई चूरू जिले में प्रवेश कर रेतीली भूमि में विलुप्त हो जाती है।

–  अपवाह क्षेत्र– कांतली नदी का प्रवाह क्षेत्र तोरावाटी कहलाता है। (तंवर राजपूतों का क्षेत्राधिकार होने के कारण)

–  नीम का थाना-सीकर में कांतली नदी के किनारे गणेश्वर सभ्यता की खोज की गई।

–  गणेश्वर सभ्यता-भारत में ताम्र युगीन सभ्यताओं की जननी कहलाती है।

(iii) काकनेय नदी-

–  मसूरदी नदी/काकनी नदी काकनेय नदी का नाम है।

–  उद्गम – कोटड़ी की पहाड़ियों (जैसलमेर)

–  काकनेय नदी राजस्थान की आंतरिक प्रवाह की सबसे छोटी नदी है।

–  काकनेय नदी जैसलमेर में मीठे पानी की बुझ झील का निर्माण करती है।

(iv) साबी नदी-

–  उद्गम – सेवर की पहाड़ियाँ (जयपुर)  

–  अपवाह क्षेत्र जयपुर, अलवर

–  साबी नदी अलवर जिले की मुख्य नदी है।

–  जयपुर की सेवर पहाड़ियों से निकल अलवर के बहरोड़, मुण्डावर एवं तिजारा में बहती हुई हरियाणा (गुरूग्राम) में प्रवेश कर विलुप्त हो जाती है।

–  साबी नदी राजस्थान की एकमात्र नदी है जो राजस्थान से हरियाणा जाती है।

–  साबी नदी किनारे प्राचीन सभ्यता जोधपुरा (जयपुर) प्राप्त हुई

(v) रूपारेल नदी-

–  रूपनारायण नदी/वराह नदी/लसावरी नदी रूपारेल नदी के अन्य नाम है।

–  उद्गम- उदयनाथ की पहाड़ियाँ, थानागाजी (अलवर)

–  अपवाह क्षेत्र अलवर से भरतपुर

–  रूपारेल नदी पर भरतपुर में मोती झील बाँध निर्मित है जो ‘भरतपुर की जीवन रेखा’ कहलाता है।

–  मोती झील बाँध से लोहागढ़ (भरतपुर) तक सुजान गंगा चैनल निकाला गया है।

–  रूपारेल नदी के किनारे भरतपुर में नोह सभ्यता (लौहयुगीन) के अवशेष प्राप्त हुए हैं।

(vi) रूपनगढ़ नदी-

–  सलेमाबाद (अजमेर) से निकल कर जयपुर जिले में सांभर झील में गिरती है।

–  रूपनगढ़ नदी के किनारे सलेमाबाद (अजमेर) में निम्बार्क सम्प्रदाय की प्रमुख पीठ स्थित है।

(vii) मेन्था नदी-

–  अन्य नाम – मेढा/मथाई नदी

–  उद्गम- मनोहरपुर की पहाड़ियाँ (जयपुर)

–  अपवाह क्षेत्र जयपुर (बहते हुए उत्तर की ओर से सांभर झील में गिरती है)

Note- मेन्था, ढूँढ, खारी, खण्डेला नदी उत्तर की ओर से सांभर झील में गिरती हैं। आंतरिक प्रवाह का सबसे अच्छा उदाहरण सांभर झील है।

(2) अरब सागरीय नदी तंत्र

–  वे नदियाँ जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अपना जल अरब सागर में ले जाती हैं अरब सागरीय नदी अपवाह तंत्र की नदियाँ कहलाती हैं।

–  अरब सागरीय नदी तंत्र राजस्थान के कुल अपवाह तंत्र का 17% है। यह राजस्थान का सबसे छोटा अपवाह तंत्र है।

–  अरब सागरीय नदी तंत्र में चार मुख्य नदियाँ शामिल हैं-

  राजस्थान में अरब सागरीय नदी तंत्र से संबंधित नदियाँ-

(1)  माही नदी-

–  माही नदी को आदिवासियों की गंगा/कांठल की गंगा/दक्षिणी राजस्थान की गंगा कहते हैं।

–  उद्गम- धार-मध्यप्रदेश की विंध्याचल पर्वत श्रेणी की मेहन्द झील से

–  माही बेसिन को प्राचीन काल में पुष्प प्रदेश कहते थे क्योंकि यहाँ महुआ ज्यादा पाया जाता था।

–  विस्तार- तीन राज्यों में (मध्यप्रदेशराजस्थान, गुजरात)

–  कुल लम्बाई- 576 किमी. (राजस्थान में इसकी लम्बाई 171 किमी.)

–  अपवाह क्षेत्र- छप्पन का मैदान/कांठल का मैदान (डूँगरपुर, बाँसवाड़ा, प्रतापगढ़)

–  राजस्थान में माही नदी खांदू (बाँसवाड़ा) से प्रवेश करती है।

–  दक्षिण राजस्थान में बाँसवाड़ा और डूँगरपुर में बहते हुए माही नदी खंभात की खाड़ी (गुजरात) में जाकर गिरती है।

राजस्थान में कुल लम्बाई- 171 किमी

माही नदी की विशेषताएँ-

–  त्रिवेणी संगम – बेणेश्वर (डूँगरपुर) में माही, सोम  जाखम के साथ मिलकर बनाती है।

–  यहाँ प्रत्येक वर्ष की माघ पूर्णिमा’ को बेणेश्वर मेला भरता है जिसे आदिवासियों का कुंभ’ कहा जाता है।

–  माही नदी कर्क रेखा (2312% उत्तरी अंक्षाश) को दो बार काटने वाली एक मात्र नदी है।

–  नोट- माही नदी कर्क रेखा को दो बार काटती है, वहीं कागों/जायरे नदी भूमध्य रेखा को दो बार काटती है एवं लिम्पोपो नदी मकर रेखा को दो बार काटती है।

नदीअंक्षाश रेखा
माही नदीकर्क रेखा
कांगो नदीभूमध्य रेखा
लिम्पोपो नदीमकर रेखा

 माही नदी अंग्रेजी के उल्टे U वर्ण का निर्माण करती है।

–  राजस्थान की एकमात्र नदी जो दक्षिण से प्रवेश करती है तथा दक्षिण में ही समाप्त होती है।

–  छप्पन बेसिन–  इन मैदानों का निर्माण में माही एवं उसकी सहायक नदियों एवं नालों द्वारा किया गया है जिनका विस्तार बाँसवाड़ा व प्रतापगढ़ जिलों में है।

–  माही नदी अपवाह तंत्र में लाल चिकनी/ लोमी मिट्‌टी पायी जाती है, जो मक्के की फसल हेतु लाभदायक है।

–  माही नदी तंत्र से संबंधित परियोजनाएँ निम्नलिखित है–

परियोजना का नामजिला
माही बजाज सागरबाँसवाड़ा
कागदी पिकअप बाँधबाँसवाडा़
भीखाभाई सागवाड़ाडूँगरपुर
कड़ाना बाँधगुजरात

1. माही बजाज सागर परियोजना-

–  यह राजस्थान और गुजरात की संयुक्त परियोजना है। जिसमें भागीदारी- राजस्थान- 45 प्रतिशत गुजरात- 55 प्रतिशत

–  माही नदी पर बोरखेडा़ (बाँसवाडा़) में माही बजाज सागर बाँध बना हुआ है।

– राजस्थान का सबसे लम्बा बाँध – 3109 मीटर

2. कागदी पिकअप बाँध-

–  माही नदी पर बाँसवाडा़ में कागदी पिकअप बाँध बना हुआ है, जिसके सभी गेट खोलने पर डैम में एक भी बूँद पानी नहीं रहता है।

3. भीखाभाई सागवाडा़ परियोजना-

–  त्वरित सिंचाई लाभ हेतु माही नदी पर साइफन का निर्माण करके भीखाभाई (सागवाडा़) नहर निकाली गई है। इस परियोजना से डूँगरपुर के सागवाडा़ क्षेत्र में सिंचाई की जाती है।

–  इसका नामकरण वागड़ के स्वतंत्रता सेनानी स्व. भीखाभाई भील के नाम पर किया गया।

4. कडाणा बाँध-

–  कडाणा बाँध माही नदी में गुजरात के महीसागर जिले में माही नदी पर स्थित है।

माही नदी की सहायक नदियाँ-

–  इरूचापलाखनजाखमसोममोरेनभादरहरणनोरी और अनास नदी माही की सहायक नदियाँ हैं।

–  माही नदी में सबसे पहले मिलने वाली सहायक नदी इरू है जो माही बजाज सागर परियोजना से पहले मिलती है।

–  राजस्थान में माही नदी में सबसे अंत में मिलने वाली सहायक नदी अनास है जो दक्षिण की ओर से आकर माही में मिलती है।

 (i) जाखम नदी-

–  उद्गम – माही की मुख्य सहायक नदी जाखम का भंवरमाता की पहाड़ियों (जाखमिया ग्राम-प्रतापगढ़) से होता है।

–  यह नदी बेणेश्वर-डूँगरपुर में आकर माही नदी से मिलती है जहाँ सोम नदी भी आकर माही नदी में मिलती है और तीनों मिलकर त्रिवेणी संगम बनाती है जहाँ बेणेश्वर मेला (आदिवासियों का कुंभ) भरता है।

–  सरमई तथा करमई जाखम की सहायक नदियाँ हैं।

–  करमई नदी जाखम से प्रतापगढ़ में मिलती है जहाँ जाखम बाँध बना हुआ है तथा सरमई नदी भी प्रतापगढ़ में जाखम नदी से मिलती है जहाँ सीतामाता अभयारण्य बना हुआ है।

–  जाखम अपवाह क्षेत्र- प्रतापगढ़, डूँगरपुर

(ii) सोम नदी-

–  उद्गम- बीच्छामेडा़ की पहाड़ियाँ (ऋषभदेव, उदयपुर)

–  यह नदी बेणेश्वर, डूँगरपुर में आकर माही नदी में मिल जाती है जहाँ सोम-माहीजाखम तीनों मिलकर त्रिवेणी संगम बनाती हैं।

–  गोमतीटीडी व झूमरी सोम नदी की सहायक नदियाँ हैं।

–  उदयपुर में सोम नदी पर सोम कागदर परियोजना तथा डूँगरपुर में सोम नदी पर सोम-कमलाअम्बा परियोजना स्थित है।

(iii) इरू नदी-

–  माही नदी में सबसे पहले मिलने वाली सहायक नदी है।

–  माही में उत्तर की ओर से आकर माही बजाज सागर परियोजना से पहले मिलती है।

–  इरू का प्राचीन नाम एराव था।

(iv) अनास नदी-

–  राजस्थान में माही नदी में सबसे अंत में मिलने वाली सहायक नदी है।

–  उद्गम- आबोर ग्राम की पहाड़ियों (मध्यप्रदेश)

–  राजस्थान में अनास नदी मेलेडी खेड़ी (बाँसवाड़ा) से प्रवेश करती है और गलियाकोट (डूँगरपुर) में यह माही नदी में मिलती है। (जहाँ दाउदी बोहरा सम्प्रदाय का उर्स भरता है)

–  नोट– सुजलाम-सुफलाम परियोजना- माही नदी में सफाई के लिए चलाया गया कार्यक्रम।

सुजलम परियोजना- यह परियोजना बाडमेर जिलें मे चलाई जा रही पेय जल परियोजना है जिसे BARC द्वारा चलाया जा रहा है।

(2) पश्चिमी बनास नदी-

–  अरब सागरीय नदी तंत्र की एक प्रमुख नदी है।

–  उद्गम- नया सनवारा (सिरोही) अरावली की पहाड़ियों से होता है।

–  पश्चिमी बनास नदी पर सिरोही में पश्चिमी बनास परियोजना निर्मित है।

–  सिरोही में प्रवाहित होते हुए पश्चिमी बनास गुजरात के बनास कांठा जिले में प्रवेश करती है और कच्छ की खाडी़ (गुजरात) में विलुप्त हो जाती है।

–  इसकी एकमात्र सहायक नदी सूकली (सीपू) है।

–  राजस्थान का आबू शहर (सिरोही) व गुजरात का डीसा शहर पश्चिमी बनास के किनारे स्थित है।

(3) साबरमती नदी-

–  उद्गम- अरावली की पहाड़ियों (झाड़ोल-उदयपुर) से

–  विलीन खंभात की खाड़ी (गुजरात)

–  साबरमती नदी की कुल लम्बाई 416 किमी. है पर राजस्थान में प्रवाह क्षेत्र मात्र 45 किमी. है।

–  अपवाह क्षेत्र- उदयपुर

–  गुजरात की राजधानी गाँधीनगरअहमदाबाद शहर और साबरमती आश्रम-साबरमती नदी के किनारे बसे हैं।

–  साबरमती नदी राजस्थान की वह नदी है जिसका अपवाह क्षेत्र मुख्य रूप से गुजरात राज्य में है।

–  साबरमती नदी की सहायक नदियाँ-

–  मानसीवाकलसेईहथमती तथा वैतरक साबरमती की सहायक नदियाँ हैं।

साबरमती की जल सुरंग (वाटर टनल)
सेई जल सुरंगमानसी वाकल जल सुरंग
विस्तारउदयपुर से पालीउदयपुर
जलापूर्तिजंवाई बांध को की जाती हैदेवास परियोजना व मोहनलाल सुखाड़िया परियोजना
महत्त्वराजस्थान की पहली जल सुरंगराजस्थान की सबसे लम्बी जल सुरंग (दूसरी सुरंग) 11.5 किमी.

–  नोट- मानसी वाकल परियोजना राजस्थान सरकार व हिन्दुस्तान जिंक लिमिटेड की एक संयुक्त परियोजना मानसी वाकल परियोजना निर्मित है, जिसमें 70 प्रतिशत जल का उपयोग उदयपुर शहर तथा 30 प्रतिशत जल का उपयोग हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड करता है।

(4) लूनी नदी-

–  उद्गम- नाग पहाड़, पुष्कर (अजमेर)

–  (इस नदी का प्रारंभिक नाम सागरमती है)

–  कुल लम्बाई– 495 किमी.

–  राजस्थान में कुल लम्बाई– 350 किमी.

–  गोविन्दगढ़ (पुष्कर) से आने वाली सरस्वती नदी मिलने के बाद इसे लूनी कहते हैं।

–  अपवाह क्षेत्र- अजमेर, पाली, नागौर, बाडमेर, जालौर, जोधपुर

–  अर्द्धशुष्क क्षेत्रों में बहनें के उपरान्त यह नदी गुजरात के कच्छ का रन में विलुप्त हो जाती है।

–  नोट– बालोतरा (बाड़मेर) तक लूनी का पानी मीठा रहता है उसके बाद लूनी नदी में लवणता की मात्रा बढ़ जाती है तो लूनी खारी हो जाती है।

–  लूनी नदी की विशेषताएँ-

–  लूनी पश्चिमी राजस्थान मरुस्थलीय प्रदेश की मुख्य नदी है।

–  राजस्थान के कुल अपवाह तंत्र में लुनी नदी का योगदान 10.40 प्रतिशत है

–  लूनी बेसिन में प्राचीन काप मृदा (बांगर) का विस्तार है।

–  लूनी नदी के अपवाह क्षेत्र को जालौर में रेल/नेडा़ कहा जाता है।

–  राजस्थान का प्राचीनतम पशु मेला मल्लीनाथ पशुमेला तिलवाडा़ (बाड़मेर) में लूनी नदी के किनारे भरता है।

–  अजमेर में अधिक वर्षा होने पर बाड़मेर के बालोतरा (बाड़मेर) में लूनी में बाढ़ आती है।

–  गौडवाड बेसिन– बाडमेर, जालौर तथा पाली में लुनी बेसिन को गौडवाड बेसिन के नाम से जाना जाता है। इस बेसिन में भूरी कछारी मट्‌टी का विस्तार है।

–  वर्तमान में लूनी नदी रंगाई छपाई उद्योग से निकलने वाले रसायन युक्त जल के कारण प्रदूषित हो रही है।

–  लूनी नदी अपवाह तंत्र से संबंधित परियोजनाएँ-

बांधनदीस्थान
जसवंत सागरलुनीजोधपुर
हेमावास बांधबांडीपाली
बांकली बांधसुकडीजालौर
जवाई बांधजवाईपाली, सुमेरपुर

नोट- जवाई बांध को मारवाड का अमृत सरोवर कहा जाता है।

–  जलापूर्ति- पाली, जालौर, जोधपुर, सिरोही जिलों को इस बांध से जलापूर्ति की जाती है।

–  जवाई बांध परियोजना पश्चिमी राजस्थान की सबसे बडी पेयजल परियोजना है।

–  जब भी जवाई बांध में पानी की कमी होती है तब जलापूर्ति सेई जल सुरंग से की जाती है।

–  लूनी की सहायक नदियाँ-

(i) लीलड़ी  लूनी में मिलने वाली पहली सहायक नदी (सोजत-पाली)

(ii) मीठड़ी  पाली

(iii) बाण्डी  राजस्थान की सबसे प्रदूषित नदी (हेमावास-पाली) – इस नदी पर पाली शहर स्थित है।

(iv) सूकडी़ – जालौर का सुवर्णगिरी दुर्ग इसी नदी के किनारे है। (देसुरी-पाली)

(v) जवाई – लूनी की सबसे लम्बी सहायक नदी इस पर जवाई बाँध बना हुआ है, जिसे मारवाड़ का अमृत सरोवर कहते हैं।

–  जवाई की सहायक नदी मथाई नदी के किनारे रणकपुर जैन मंदिर बने हुए हैं।

–  जवाई नदी (सायला-जालौर) में खारी नदी आकर मिलती है जिसके पश्चात जवाई नदी सूकड़ी II के नाम से जानी जाती है।

(vi) सागी  जसवंतपुरा पहाडी़ (जालौर) से लूनी में सबसे अंत में मिलने वाली सहायक नदी है।

(vii) जोजड़ी  लूनी की एकमात्र ऐसी सहायक नदी जो लूनी में दायीं ओर से आकर मिलती है, जिसका उद्गम अरावली की पहाडी़ नहीं है। यह नदी नागौर के पोडलू गाँव से निकलती है।

3. बंगाल की खाड़ी नदी तंत्र

–  वे नदियाँ जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अपना जल बंगाल की खाडी़ में ले जाती हैं बंगाल की खाडी़ की नदियाँ कहलाती हैं।

–  राजस्थान के कुल अपवाह तंत्र का 23% भाग बंगाल की खाडी़ नदी तंत्र के अन्तर्गत आता है।

–  नोट- राजस्थान में सर्वाधिक नदियाँ बंगाल की खाडी़ नदी तंत्र के अन्तर्गत आती हैं।

–  बंगाल की खाड़ी नदी तंत्र की प्रमुख नदियाँ-

शिप्रा नदी, चम्बल नदी, बनास, बामनी नदी, कुराल-मेज नदी, सीप नदी, पार्वती नदी, कालीसिंध, परवन, आहु, बाणगंगा नदी, गंभीर नदी

(i) बाणगंगा नदी-

–  अन्य नाम अर्जुन की गंगा, रूण्डित नदी, ताला नदी

–  उद्गम- बैराठ की पहाड़ियों जयपुर

–  बाणगंगा नदी के किनारे ही बैराठ सभ्यता विकसित हुई जो कि लौह युगीन सभ्यता थी।

–  अपवाह क्षेत्र- जयपुर, दौसा व भरतपुर

–  नोट- भरतपुर से बाणगंगा नदी यमुना नदी (आगराउत्तर प्रदेश) में मिल जाती है।

–  भरतपुर में बाणगंगा की सहायक नदी गंभीर नदी पर अजान बाँध निर्मित है जिससे भरतपुर जिले को पेयजल व सिंचाई सुविधा उपलब्ध होती है।

–  केवलादेव घना पक्षी विहार को भी पेयजल आपूर्ति अजान बाँध से होती है।

–  बाणगंगा व यमुना नदी के मैदानी भाग को ‘रोही मैदान’ की संज्ञा दी गई है।

(ii) चम्बल नदी-

(ii) चम्बल नदी-

–  बंगाल की खाडी़ नदी तंत्र की सबसे मुख्य नदी चम्बल नदी है।

–  इसे ‘राजस्थान की कामधेनु व चर्मण्वती नदी भी कहते है।

–  उद्गम- जानापाव की पहाड़ियाँ, मध्यप्रदेश, विध्यन पर्वतमाला

–  राजस्थान में चम्बल नदी प्रवेश चौरासीगढ़ (चित्तौड़से करती है और छह जिलों से प्रवाहित होती हुई (मुरादगंज-इटावा, उत्तरप्रदेश) यमुना नदी में मिल जाती है।

–  चम्बल नदी का विस्तार तीन राज्यों (मध्यप्रदेश, राजस्थान तथा उत्तरप्रदेश) में है।

–  चम्बल नदी की कुल लम्बाई– 1051 किमी.

–  राजस्थान में चम्बल की लम्बाई– 322 किमी.

–  चम्बल नदी मध्यप्रदेश और राजस्थान के मध्य 241 किमी. की सीमा बनाती है।

–  चम्बल नदी बूँदी-कोटा, कोटा-सवाईमाधोपुर तथा बूँदी-चित्तौड़गढ़ के मध्य सीमा बनाती है।

–  चम्बल नदी की विशेषताएँ-

(i) चम्बल नदी राजस्थान की एकमात्र नित्यवाही नदी है।

(ii) चम्बल नदी राजस्थान की सबसे लम्बी नदी है।

(iii)चम्बल नदी राजस्थान में सतही जल, जल की उपलब्धता, जल की उपयोगिता की दृष्टि से सबसे बड़ी नदी है क्योंकि राजस्थान में सर्वाधिक नदियाँ चम्बल नदी तंत्र के अन्तर्गत आती है।

(iv) चम्बल नदी पर चित्तौड़गढ़ में राजस्थान का सबसे ऊँचा जलप्रपात (चूलिया जलप्रपातस्थित है।

(v) चम्बल नदी सर्वाधिक अवनालिका अपरदन /बीहड़/उत्खात स्थलाकृति के लिए प्रसिद्ध है।

(vii) चम्बल बेसिन में नवीन जलोढ़ मृदा (खादर) का विस्तार है।

चम्बल नदी से संबंधित परियोजनाएँ-चम्बल नदी घाटी परियोजना-–  यह एक बहुउद्देशीय परियोजना है, जिसमें सिंचाई तथा विद्युत उत्पादन प्राथमिक उद्देश्य है।-  साझेदारी- राजस्थान : मध्यप्रदेश               (50  :    50)–  इस नदी घाटी परियोजना के तहत तीन चरण मे चार बांधों का निर्माण किया गया है-  

प्रथम चरण1.  गांधी सागर बांध (मन्दसौर, मध्यप्रदेश)  25X5= 125 MW2.  कोटा बैराज (कोटा) पेयजल व सिंचाई हेतुद्वितीय चरण3.  राणा प्रताप सागर (चितौडगढ़)   43×4= 172 MW  नोट- जल विद्युत उत्पादन की दृष्टि से यह  राजस्थान का सबसे बड़ा बाँध हैतृतीय चरण4.  जवाहरसागर बांध (कोटा बूंदी)      33×3= 99MW

–  चम्बल नदी की निम्नलिखित सहायक नदियाँ है, बामनी नदी, कुराल नदी, बनास नदी, पार्वती नदी, कालीसिंध नदी, सीप नदी, परवन नदी आदि। बामनी नदी/ब्राह्मणी नदी-–  उद्गम– हरिपुरा की पहाड़ियों (चित्तौड़गढ़), यह भैंसरोड़गढ़ (चित्तौड़गढ़) में चम्बल नदी से मिल जाती है।-  राजस्थान की ओर से चम्बल नदी में सबसे पहले मिलने वाली नदी बामनी नदी है।कुराल नदी-–  उद्गम- उपरमाल का पठार (चित्तौड़गढ़)-  अपवाह क्षेत्र– चित्तौड़, बूँदी, कोटा  तथा कोटा में यह नदी चम्बल नदी में मिलती हैं।-  कुराल की सहायक मेज नदी है।बनास नदी-–  अर्थात् वन की आशा-  बनास नदी पूर्णत: राजस्थान में बहने वाली सबसे लम्बी नदी है।–  लम्बाई- 512 किमी.–  उद्गम- खमनोर की पहाड़ियाँ (राजसमंद) हैं तथा यह छह जिलों से प्रवाहित होते हुए रामेश्वर (सवाई माधोपुर) में चम्बल नदी से मिल जाती है।-  अपवाह क्षेत्र- मेवाड़ का मैदान, करौली-मालपुरा का मैदान (मुख्यत: अजमेर,टोंक, सवाई माधोपुर)-  बनास बेसिन का विस्तार छह जिलों राजसमंद, चित्तौड़गढ़, भीलवाडा़, अजमेर, टोंक व सवाई माधोपुर में हैं।

–  बनास बेसिन में लाल-पीली मृदा (भूरी मृदा) का विस्तार पाया जाता है।

–  नोट- राजस्थान में सर्वाधिक त्रिवेणी बनाने वाली नदी बनास है। तथा यह नदी राजस्थान में सर्वाधिक प्रदुषित नदी भी है।

–  बीसलपुर बांध-

–  स्थिति– टोंक

–  नदी- बनास

–  यह राजस्थान की सबसे बड़ी पेयजल परियोजना है। यहाँ से टोंक, जयपुर, अजमेर, दौसा, नागौर एवं सवाई माधोपुर में जलापूर्ति की जाती है।

–  बीसलपुर बांध राजस्थान का सबसे बडा कंक्रीट निर्मित बांध है जिसे कंजेर्वेशन रिजर्व में भी शामिल किया गया है।

–  बीसलपुर बांध का अतिरिक्त जल ईसरादा बांध में वितरित किया जाता है।

–  बनास की सहायक नदियाँ-

–  बेड़च, मेनाल, कोठारी, खासी, डाई, मोरेल आदि बनास की सहायक नदियाँ हैं।

1. बेड़च/आयड़ नदी

–  बेड़च नदी का उद्गम गोगुन्दा की पहाड़ियों (उदयपुर) से होता है तथा इसका अपवाह क्षेत्र उदयपुरचित्तौड़गढ़  भीलवाडा़ है।

–  बेड़च नदी बिंगोद –भीलवाड़ा में बनास नदी में मिल जाती है।

–  बेड़च नदी का प्रारंभिक नाम आहड़/आयड़ नदी है जो उदयसागर झील (उदयपुर) में मिलने के बाद बेड़च के नाम से जानी जाती है।

–  बेड़च नदी के किनारे उदयपुर में आहड़ सभ्यता (ताम्रनगरीकी खोज की गई।

–  गंभीरी नदी बेड़च की सहायक नदी है।

–  बेड़च और गंभीरी नदियों के संगम पर चित्तौड़गढ़ दुर्ग स्थित है।

–  उदयसागर झील मे गिरने के उपरान्त आयड़ नदी को बेड़च कहा जाता है।

–  बनास में दायीं और से मिलने वाली सबसे लम्बी नदी बेड़च है।

2. मेनाल नदी-

–  मेनाल नदी का उद्गम बेंगू (चित्तौड़गढ़) से होता है तथा चित्तौड़गढ़ एवं भीलवाडा़ में प्रवाहित होते हुए यह बनास नदी (बींगोद-भीलवाड़ा) में मिल जाती है।

–  मेनाल नदी भीलवाडा़ में मेनाल जलप्रपात का निर्माण करती है।

3. कोठारी नदी-

–  कोठारी नदी का उद्गम दिवेर की पहाड़ियों (राजसमंद) से होता है तथा यह नंदराय (भीलवाड़ा) में बनास नदी में मिल जाती है।

–  कोठारी नदी के किनारे भीलवाड़ा में बागोर सभ्यता (मध्य पाषाण कालीन) की खोज की गई जहाँ से प्राचीनतम पशुपालन के प्रमाण मिले हैं।

–  कोठारी नदी (भीलवाड़ा) पर मेजा बाँध बना हुआ है।

4. खारी नदी-

–  खारी नदी का उद्गम बिजराल ग्राम की पहाड़ियों (राजसमंद) से होता है।

–  खारी नदी का अपवाह क्षेत्र राजसमंद, भीलवाड़ा, अजमेर व टोंक है।

–  देवली, टोंक में खारी नदी बनास में मिल जाती है।

–  खारी नदी पर अजमेर में नारायण सागर परियोजना स्थित है।

5. पार्वती नदी-

–  पार्वती नदी का उद्गम सिहोर क्षेत्र (मध्य प्रदेश) से होता है राजस्थान में प्रवेश करयाहाट (बाराँ) से करती है।

–  पार्वती नदी पालिया ग्राम-सवाई माधोपुर में चम्बल नदी में मिल जाती है।

–  पार्वती नदी राजस्थान तथा मध्यप्रदेश की दो बार सीमा बनाती है।

6. कालीसिंध नदी-

–  कालीसिंध नदी का उद्गम बागली ग्राम की पहाड़ियों (देवास, मध्यप्रदेश) से होता है।

–  राजस्थान में कालीसिंध नदी का प्रवेश बिन्दा (रायपुर, झालावाड़) से होता है और नानेरा (कोटा) में चम्बल नदी में मिलती है।

–  आहु तथा परवन कालीसिंध की सहायक नदियाँ हैं। कालीसिंध तथा आहू के संगम बाराँ की सीमा बनाती है।

–  कालीसिंध तथा आहू नदियों के संगम पर झालावाड़ में गागरोन दुर्ग स्थित है।

–  कालीसिंध और परवन नदी के किनारे मनोहरथाना दुर्ग स्थित है।

–  परवन नदी के किनारे बाराँ जिले में शेरगढ़ दुर्ग (कोशवर्द्धन दुर्ग) स्थित है।

राजस्थान की नदियों से संबंधित अन्य महत्वपूर्ण तथ्य-

–  सर्वाधिक नदियाँ- चितौड़गढ़

–  न्यूनतम नदियाँ- बीकानेर, चूरू (कोई भी नदी नहीं)

–  सर्वाधिक नदी संभाग- कोटा संभाग

–  उत्तरी राजस्थान की सबसे लम्बी नदी- घग्घर

–  पश्चिमी राजस्थान की सबसे लम्बी नदी- लुनी

–  दक्षिण राजस्थान की सबसे लम्बी नदी- माही

–  पूर्वी राजस्थान की सबसे लम्बी नदी- चम्बल

–  लम्बाई के अनुसार नदियों का अवरोही क्रम-

I.   चम्बल – 1051 किमी.

II.  माही   – 576 किमी.

III. बनास – 512 किमी.

IV. लूनी   – 495 किमी.

–  अपवाह क्षैत्र के अनुसार नदियों का अवरोही क्रम-

I.    बनास नदी

II.  लूनी नदी

III. चंबल नदी

IV. माही नदी

–  उप-बेसिन के अनुसार नदियों का अवरोही क्रम-

I.  लूनी नदी

II. बनास नदी

III.चंबल नदी

IV. माही नदी

राजस्थान की झीलें

–  झील, जल का वह स्थिर भाग है जो चारों और से स्थलखंडों से घिरा होता है। झील की दूसरी विशेषता उसका स्थायित्व है।

–  सामान्य रूप से झील भूतल के वे विस्तृत गड्ढे हैं जिनमें जल भरा होता है। 

–  राजस्थान में परम्परागत जल संरक्षण विधियों में सर्वाधिक प्रचलित विधि झीलें हैं।

–  पानी की प्रकृति के आधार पर राजस्थान की झीलों को दो भागों में बांटा गया है-

राजस्थान में मीठे पानी की झील-

(i) पुष्कर झील (अजमेर)

–  उपनाम  तीर्थराज, तीर्थों का मामा, हिन्दुओं का पाँचवाँ तीर्थ।

–  राजस्थान की सबसे बड़ी प्राकृतिक झील है।

–  यह ज्वालामुखी क्रिया द्वारा निर्मित क्रेटर/कोल्डर झील का उदाहरण है।

–  पुष्कर झील, लोनार झील (महाराष्ट्र) के बाद भारत की दूसरी बड़ी ज्वालामुखी क्रिया द्वारा निर्मित झील है।

–  नोट- राष्ट्रीय झील संरक्षण कार्यक्रम (2001) जो कि वन एवं पर्यावरण मंत्रालय (भारत सरकार) द्वारा झीलों के पुनरुद्धार के लिए चलाया जा रहा है।

–  पुष्कर झील धार्मिक दृष्टि से सबसे पवित्र झील है। इसके किनारे वेदों को लिपिबद्ध किया गया तथा महाभारत की रचना की गई।

–  पुष्कर झील के किनारे 52 घाट स्थित है, जिसमें जनाना घाट/गाँधी घाट सर्वाधिक प्रसिद्ध है।

–  पुष्कर झील के पास ब्रह्माजी का मंदिर, सावित्री जी का मन्दिर, रमा बैकुंठेश्वर मंदिर, भर्तृहरि की गुफा और कण्व मुनि का आश्रम है।

–  पुष्कर झील के किनारे कार्तिक पूर्णिमा को विशाल मेला भरता है, जिसे रंगीला मेला, कार्तिक मेला या गुब्बारों का मेला कहते हैं।

–  पुष्कर झील की स्वच्छता हेतु वर्ष 1997 में कनाडा के सहयोग से ‘पुष्कर गैप’ परियोजना चलाई जा रही है। यह परियोजना सौन्दर्यकरण, संरक्षण तथा जल की गुणवत्ता बढ़ाने हेतु संचालित किया जा रहा है। इसमें पुष्कर झील सहित राजस्थान की छह झीलें शामिल हैं।

(ii) नक्की झील (माउण्ट आबू – सिरोही)–  राजस्थान के उड़िया के पठार पर स्थित सबसे ऊँची मीठे पानी की प्राकृतिक झील, जो ज्वालामुखी क्रिया से निर्मित क्रेटर झील का उदाहरण है।-  नक्की झील के टॉड रॉक, नन रॉक, नंदी रॉक व हॉर्न रॉक नामक चट्टानें हैं।-  नक्की झील के बारे में कहा जाता है कि इसका निर्माण देवताओं ने नाखूनों से खोदकर किया था।-  नक्की झील को गरासिया जनजाति के लोग सबसे पवित्र स्थल मानते हैं।-  नक्की झील के किनारे रघुनाथ जी का मंदिर, हाथी गुफा, चम्पा गुफा, राम झरोखा आदि स्थान है।-  राजस्थान की एकमात्र हिल स्टेशन झील है।(iii) कोलायत झील (बीकानेर)–  कार्तिक पूर्णिमा को कोलायत झील के किनारे कपिल मुनि का प्रसिद्ध मेला भरता है। तथा इस झील के निर्माता कपिल मुनि है।-  पुष्कर झील की तरह इस झील में भी दीप दान किया जाता है।-  चारण जाति के लोग इस झील के दर्शन नहीं करते हैं।-  पीपल के वृक्षों की अधिकता के कारण इसे शुष्क मरुस्थल का सुन्दर मरु उद्यान कहते हैं।(iv) गजनेर झील (बीकानेर)–  राजस्थान की एकमात्र झील जो दर्पण के समान प्रतीत होती है। (प्रतिबिंब में गजनेर महल दिखाई देता है) ।-  गजनेर झील के पास ही गजनेर अभयारण्य बना है जो कि बटबड़ पक्षी के लिए प्रसिद्ध हैं।(v) जयसमंद झील/ढेबर झील (उदयपुर)- –  जयसमंद झील भारत की दूसरी सबसे बड़ी मीठे पानी की कृत्रिम झील है। (पहली गोविन्दसागर झील, हिमाचल प्रदेश)।-  यह राजस्थान की पहली कृत्रिम झील है।-  इसका निर्माण मेवाड़ महाराणा जयसिंह ने (1685-1691 ई.) करवाया था।-  इसका निर्माण गोमती नदी/झावरी नदी/बागर के पानी को रोककर करवाया गया।-  जयसमंद झील को ढेबर झील भी कहते हैं।-  जयसमंद झील के पूर्व में कटा-फटा लसाड़िया का पठार स्थित है।-  जयसमंद झील में 7 टापू हैं।-  सबसे बड़ा टापू बाबा का मगरा/बाबा का भांगड़ा है।-  सबसे छोटा टापू प्यारी है।-  इन टापूओं में भील-मीणा जनजाति निवास करती है।-  इस झील में जलीय जैव विविधता अधिक होने के कारण इसे जलीय जीवों की बस्ती कहा जाता है।-  जयसमंद झील के पास रूठी रानी का महल, चित्रित हवामहल, हाथी की पाषाण मूर्ति है।-  जयसमंद झील से सिंचाई हेतु श्यामपुर तथा भाट नामक दो नहरें निकाली गई हैं।

(vi)  राजसमंद झील (राजसमंद)-

–  राजसमंद झील का निर्माण महाराणा राजसिंह ने 1662-1676 ई. में कांकरोली (नाथद्वारा) में गोमती, ताल तथा केलवा नदियों के पानी को रोककर करवाया।-  घेवर माता द्वारा नींव रखी जाने के कारण राजसमंद झील के किनारे घेवर माता का मंदिर है।-  राजसमंद झील के किनारे नौ चौकी की पाल पर विश्व की सबसे बड़ी प्रशस्ति (राज प्रशस्ति) 25 शिलालेखों पर संस्कृत भाषा में उत्कीर्ण हैं।  –  राज प्रशस्ति के लेखक रणछोड़ भट्ट हैं। राज प्रशस्ति में मुगल-मेवाड़ संधि का भी उल्लेख है।-  यह झील अकाल राहत कार्यो हेतु निर्मित की गई देश की पहली झील है। जिसका निर्माण 1662 ई. में हुआ था।-  यहां पर प्रमुख धार्मिक स्थल- द्वारकाधीश मंदिर व घेवर माता मंदिर है।-  इस झील के किनारे सूर्य घंडी के अवशेष भी प्राप्त हुए है।(vii)  पिछोला झील (उदयपुर)-–  पिछोला झील का निर्माण राणा लाखा के समय पिच्छू बंजारा द्वारा पिछोला गाँव (उदयपुर) में करवाया गया।-  पिछोला झील में सिसारमा व बुझरा नदी का जल आता है।-  पिछोला झील में दो महल बने हुए हैं।-  इस झील के पास प्राचीन धरोहर नटनी का चबूतरा, जगमंदिर, जगनिवास (लेक पेलैस होटल) स्थित है।जग मंदिर महल-–  पिछोला झील में एक टापू पर बने जग मंदिर महल को ताजमहल का पूर्वगामी कहा जाता है।-  इसका निर्माण महाराणा कर्णसिंह ने प्रांरभ करवाया था किन्तु इसका कार्य पूरा महाराणा जगतसिंह प्रथम ने करवाया था।-  1857 ई. की क्रांति के दौरान महाराणा स्वरूप सिंह ने अंग्रेजों को शरण दी थी।-  नोट- पिछोला झील राजस्थान की पहली झील है जहाँ सौर ऊर्जा संचालित नौका चलाई जा रही है।जगनिवास महल–  इस महल का निर्माण महाराणा जगतसिंह द्वितीय ने करवाया था।(viii) फतेह सागर झील, उदयपुर-–  फतेह सागर झील का निर्माण (1678-80 ई.) महाराणा जयसिंह द्वारा देवली तालाब के रूप में करवाया गया।-  1888-1889 ई. में महाराणा फतेह सिंह द्वारा इसका पुनर्निर्माण करवाया गया।-  फतेह सागर झील की नींव अंग्रेज अधिकारी ड्यूक ऑफ कनॉट द्वारा रखी गई इसीलिए फतेह सागर पर बने बाँध का नाम कनॉट बाँध रखा है।-  फतेह सागर के सबसे बड़े टापू पर नेहरू उद्यान, दूसरे टापू पर सौर वैधशाला और सबसे छोटे टापू पर जेट माउण्टेन स्थित है।-  भारत की सबसे बड़ी सौर वैधशाला फतेहसागर झील में लगी है।–  फतेहसागर झील को पिछोला झील से स्वरूप सागर नहर जोड़ती है।(ix)आनासागर झील (अजमेर)-–  आनासागर झील का निर्माण अजमेर चौहान शासक अर्णोराज द्वारा (1137 ई.) बांडी नदी पर करया गया।-  झरना– चश्मा-ए-नुर-  जहाँगीर ने आनासागर झील के किनारे दौलतबाग (सुभाष उद्यान) का निर्माण करवाया था।-  यहाँ पर जहाँगीर ने टॉमस रो से मुलाकात की थी।-  शाहजहाँ ने आनासागर झील पर बारहदरी का निर्माण करवाया। (पूर्णत: संगमरमर से बनी)(x) फॉय सागर झील (अजमेर)–  फॉय सागर झील का निर्माण अकाल राहत कार्य के दौरान 1891-92 ई. में अंग्रेज अधिकारी फॉय के निर्देशन में हुआ था।-  नदी– बांडी(xi) बालसमंद झील (जोधपुर)–  बाल समन्द झील का निर्माण गुर्जर प्रतिहार शासक बालक राव (बाऊक) ने करवाया था।(xii) कायलाना झील (जोधपुर)–  इसका निर्माण जोधपुर के महाराजा सर प्रताप सिंह ने अकाल राहत कार्य के दौरान करवाया था।-  निर्माण काल- 1872 ई.-  नोट– इंदिरागांधी नहर परियोजना  से इस झील में वितरित किया जाता है।(xiii) सिलीसेढ़ झील (अलवर)–  सिलीसेढ़ झील का निर्माण अलवर के महाराजा विनय सिंह ने करवाया था।-  यह झील गोल्डन ट्राइएंगल पर स्थित है। (जयपुर, दिल्ली, आगरा)।-  इस झील को राजस्थान का नंदन कानन भी कहा जाता है।–  नोट- राजस्थान की अन्य मीठे पानी की झीलें-तलवाड़ा झील  हनुमानगढ़तालछापर झील  चूरूनवलखा झील  बूँदीदुगारी/कनक सागर  बूँदीगैब सागर  डूँगरपुरमानसरोवर – झालावाड़कोडिला – झालावाड़पीथमपुरी – सीकर              जैत सागर –बूँदी     राम सागर – धौलपुरतालाब शाही – धौलपुरतेज सागर – प्रतापगढ़मूल सागर – जैसलमेरअमर सागर – जैसलमेरगजरूप सागर – जैसलमेरगढ़सीसर – जैसलमेरपन्नाशाह तालाब – झुंझुनूं

राजस्थान की खारे पानी की झीलें

–  उत्तर-पश्चिम राजस्थान में मुख्यत: खारे पानी की झीलें पाई जाती है, जो कि टेथिस सागर का अवशेष है।

(1)  सांभर झील-

–  सांभर झील नमक उत्पादन करने वाली भारत की सबसे बड़ी आंतरिक झील है।

–  सन् 1960 में राजस्थान सरकार द्वारा सांभर सॉल्ट लिमिटेड की स्थापना की गई थी।

–  सांभर झील में एल्गी/शैवाल/बैक्टीरिया पाया जाता है, जिसका उपयोग नाइट्रोजनयुक्त खाद बनाने में किया जाता है।

–  सांभर झील रामसर साइट की सूची में भी शामिल है।

–  सांभर झील तीन जिलों में विस्तृत हैं – जयपुर, नागौर एवं अजमेर

–  यह झील राजस्थान का सबसे निम्नतम बिन्दु है।

–  सांभर झील में नमक क्यार पद्धति से उत्पादित जाता है।

–  वर्ष 1964 में यह भारत सरकार के अधीन आ गई और इसका नाम ‘हिन्दुस्तान सांभर सॉल्ट लिमिटेड’ कर दिया गया।

–  सांभर झील में उत्तरी एशिया से पक्षी आते हैं, जिन्हें फ्लेमिंगो कहते हैं।

–  हाल ही में सांभर झील में फ्लेमिंगो पक्षियों के मरने का कारण ब्यूटोलिज्म/बोटुलिज्म रोग है।

–  सांभर झील की लम्बाई 32 किमी. और चौड़ाई 12 किमी. है।

–  एशिया की सबसे बड़ी आंतरिक नमक उत्पादन झील है।

(2)  पचपदरा झील (बाड़मेर)

–  इस झील का नमक सर्वाधिक खाने योग्य होता है क्योंकि इसमें NaCl 98% होता है और 2% आयोडीन पाया जाता है।

–  पचपदरा झील में खारवाल जाति के लोग मोरड़ी झाल की सहायता से नमक उत्पादन करते हैं।

–  मोरली झाड़ी का उपयोग नमक उत्पादन में किया जाता हैं।

(3)  डीडवाना – (नागौर)

–  इस झील के नमक में सोडियम सल्फेट ज्यादा पाया जाता है। अत: इस झील का नमक खाने योग्य नहीं होता है।

–  इस झील का नमक चमड़ा उद्योग तथा रंगाई छपाई उद्योग में काम आता है।

–  राजस्थान सरकार द्वारा डीडवाना में सोडियम सल्फेट बनाने का कारखाना लगाया है, जिसका उपयोग कृत्रिम कागज बनाने में किया जाता है।

–  डीडवाना झील में नमक बनाने की निजी संस्थाओं को देवल कहा जाता है।

–  डीडवाना झील में नमक उत्पादन हेतु वर्ष 1964 में राजस्थान स्टेट केमिकल्स वर्क्स की स्थापना की गई।

(4)  कावोद झील – (जैसलमेर)

–  प्राचीन काल की सर्वश्रेष्ठ नमक उत्पादक झील है।

(5)  लूणकरणसर झील – (बीकानेर)

–  उत्तरी राजस्थान की एकमात्र खारे पानी की झील जो राष्ट्रीय राजमार्ग-15 पर स्थित है।

(6)  डेगाना झील – नागौर

(7)  कुचामन झील – नागौर

(8)  रेवासा झील – सीकर

(9)  फलोदी झील – जोधपुर

नोट- थार मरुस्थल में स्थित खारे पानी की झील टेथिस सागर का अवशेष है।

–  नोट– नावा (नागौर) में वर्ष 2010 में आदर्श नमक उत्पादन केन्द्र (मॉडल नमक मण्डी) की स्थापना की गई, जो उत्तर-पश्चिम भारत की सबसे बड़ी नमक परियोजना है।

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राजस्थान राज्य सूचना आयोग (Rajasthan Information Commission)

राजस्थान का राज्य निर्वाचन आयोग (Rajasthan State Election Commission)

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